Saturday 5 August 2017
तीसरा नेत्र: मेरी डायरी : पैंतीस दिन परदेश
तीसरा नेत्र: मेरी डायरी : पैंतीस दिन परदेश: हम दोनों (दंपत्ति) अपने बेटी-दामाद रचना एवं संजय के आमंत्रण पर १२ जून २००१ से १७ जुलाई २००१ तक संयुक्त राज्य अमरीका के न्यू जर्सी प्रान्त ...
Thursday 24 September 2015
मनुष्यता को बचाने वाले कम नहीं थे
कदम कदम डेरे बसेरे थे उनके
सड़कें थी गाडियां थी
आसमान को छूने वाली आतिशबाजियां थी
तरह तरह के घुड़सवार थे
बग्घियां थी राजसी ठाठ वाली
कितना कुछ था मनुष्यता को बचाने क़ो
एटम बम भी मनुष्यता के लिये ही था
कविताओं की एक दुनिया थी
जो मनुष्यता को बचाने के अलावा
दूसरा कोई काम ही नहीं करती थी
अनेक लोग थे जो
बेपढों को पढ़ाने का काम करते थे
पर्यावरण की चिन्ता में डूबे लोग
कुछ ज्यादा कर न पाने की वजह से
अवसादग्रस्त होने की स्थिति में थे
कुछ लोगों ने दुनिया की ज्यादातर दौलत को
अपने कब्जे में कर लिया था
वे भी यही अखबारों में लिखवाते थे
कि मनुष्यता को बचा रहे हैं।
तानाशाहियां और लोकतंत्र दोनों के पास ही
अपने अपने संविधान थे
दोनों का जोर शोर से यही कहना था
कि वे मनुष्यता की रक्षा के सिवा
और कोई काम नहीं कर रहे हैं
खुशी की बात है
कितना कितना किया जा रहा है
मनुष्यता को बचाने के लिये ।
कदम कदम डेरे बसेरे थे उनके
सड़कें थी गाडियां थी
आसमान को छूने वाली आतिशबाजियां थी
तरह तरह के घुड़सवार थे
बग्घियां थी राजसी ठाठ वाली
कितना कुछ था मनुष्यता को बचाने क़ो
एटम बम भी मनुष्यता के लिये ही था
कविताओं की एक दुनिया थी
जो मनुष्यता को बचाने के अलावा
दूसरा कोई काम ही नहीं करती थी
अनेक लोग थे जो
बेपढों को पढ़ाने का काम करते थे
पर्यावरण की चिन्ता में डूबे लोग
कुछ ज्यादा कर न पाने की वजह से
अवसादग्रस्त होने की स्थिति में थे
कुछ लोगों ने दुनिया की ज्यादातर दौलत को
अपने कब्जे में कर लिया था
वे भी यही अखबारों में लिखवाते थे
कि मनुष्यता को बचा रहे हैं।
तानाशाहियां और लोकतंत्र दोनों के पास ही
अपने अपने संविधान थे
दोनों का जोर शोर से यही कहना था
कि वे मनुष्यता की रक्षा के सिवा
और कोई काम नहीं कर रहे हैं
खुशी की बात है
कितना कितना किया जा रहा है
मनुष्यता को बचाने के लिये ।
Sunday 20 September 2015
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