मुक्तिबोध की सिफ्त यह रही है कि हर सवाल की शुरूआत वे खुद से करते हैं
जबकि दूसरे अधिकांश खुद को बचाकर ।आत्मबोध उनकी ऐसी शक्ति है जो उनके हर
विचार को अनुभव की आंच में पकाकर सौ टंच खरा बना देती है ।जीवनानुभवों ने
उनके रचना कर्म में वह निखार पैदा कर दिया है जो दूर से सूरज की तरह दमकता
है।
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