मिथकों में जीने वाला समाज ऐसी बेडियों में जकडा रहता है जो उसने स्वयं अपने हाथों से
खुश होकर लगाई हैं ।इतना ही नहीं वह उनके लिये इन्सानों की हत्या करने तक को अपना धर्म मानकर अंजाम देते हुए गौरव का अनुभव करता है।
खुश होकर लगाई हैं ।इतना ही नहीं वह उनके लिये इन्सानों की हत्या करने तक को अपना धर्म मानकर अंजाम देते हुए गौरव का अनुभव करता है।
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