Saturday 19 September 2015

गांव में रहते हुए आज तेरहवां दिन है ।भाइयों का एक दिन और रुक जाने का आग्रह है।कष्ट तो है लेकिन सोचता हूं कि इनको तो पूरा जीवन ही इन कष्टों में गुजारना है।ये इसके अभ्यस्त हो चुके हैं ।भीषण गर्मी और बिजली की आंखमिचौनी ,यही बहुत भारी कष्ट है ।आमदनी की कमी होने से महंगे
शहरी जीवन जैसी सुविधाओं से महरूम ।वर्गीय जीवन का खुला परिदृश्य। जीवन तो जीवन है ।वह चाहे जहां हो।इसलिये आज यहां और ठहर जाने का निर्णय करके सुबह अपने खेतों की तरफ निकल गया ।बटवारा होते होते हम सात भाइयों के बीच में सात सात बीघे खेत हिस्से में आये हैं ।यदि पेंशन नहीं होती .खेती पर ही पूरी तरह निर्भर होता तो भूखों मरने की नौबत आ जाती इसलिये सोचता हूं कि जो परिवार आज केवल खेती पर निर्भर हैं उनकी कैसी हालत होगी।
इस समय खरीफ की फसल खेतों में खडी है वर्षा का इन्तजार करती हुई ।झील के खेतों में पानी की सरसाई रहने की वजह से पूठ के खेतों से अच्छी फसल है ।ज्वार के पौधे आठ आठ फीट ऊंचे होंगे ।बाजरा ठसक के साथ पकाव के इन्तजार में है।बगल में ही जहां पानी का ठहराव अधिक है धान बोया हुआ है लेकिन अभी बाल जहां तहां ही निकली हैं।हरा कचन्द है।सहज प्राकृतिक मनमोहक हरीतिमा।पास में डीजल का पम्प चल रहा है ।धान की भराई हो रही है।एक मेव किसान ने अधबटाई पर एक महाजन के खेत ले रखे हैं।यहीं एक कच्चा घर बनाया हुआ है ।बगल में गाय और भैंस बंधी है।सूरज आसमान में ऊपर चढ आया है जिसकी किरणें स्कूल भवन के बगल में कभी चिमन बाग के नाम से जाने वाले खेतों पर पड रही है।यह बागों का जमाना नहीं ।यह चिमन बाग कभी अपने बेरों के लिये मशहूर था ।अब इसकी वह रौनक नहीं।इससे थोडी सी दूरी पर दीवान जी का बाग था।अब वह बाग भी गायब है।इसके खेतों में एक साथ बीस दुकान बन गयी हैं ।यहीं बगल में गोपाल कुंड है।जिसे लगभग दो सौ साल पहले गांव सेठ लालाओं ने बनवाया था ।यह शताब्दी से अधिक समय तक गांव की अधिकांश आबादी का स्नान ध्यान केन्द्र बना रहा ।इसके उत्तरी और दक्षिणी घाटों पर दोनों तरफ बडे बडे भवन बनाकर उन पर कलात्मक और दीर्घाकार चित्रांकित छतरियां बनाई गयी हैं।पश्चिमी घाट पर गोपाल मन्दिर बना हुआ है ।इस मन्दिर में बचपन में हमने सावन के महीने में गोपाल राधा को खूब हिंडोले झुलाया है।पूरब दिशा खाली और खुली हुई है।इस दिशा में एक बाग लगाया गया था जिसमें खिरनी ,जामुन,मौलश्री के पेडों के नीचे बचपन में अपने सहपाठियों के साथ हम खूब खेलते थे।आज भी जब पुराने सहपाठी मिलते हैं तो उन दिनों की याद करना नहीं भूलते ।जब वर्तमान ज्यादा तनाव भरा होता है तो अतीत सम्मोहनकारी लगने लगता है।असल बात सम्बन्धों की है।इससे पूर्व के सामन्ती रिश्तों में भी आज जैसा अलगाव और अजनबीपन नहीं था ,इसलिये लोग उन दिनों को याद करने लगते हैं ।

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