जो लोग समझते हैं कि केवल साहित्य रचना से हिन्दी भाषा ज्ञान समृद्ध हो
जायगी वे बहुत भारी मुगालते में हैं ।कोई भी भाषा सम्पूर्ण जीवन व्यवहार को
जब तक ज्ञान के दायरे में नहीं लाती तब तक वह अपंग रहती है।हिन्दी के लगभग
सभी जीवन क्षेत्र अभी तक अपने ज्ञानात्मक व्यवहार के लिए अंग्रेजी पर
निर्भर हैं,इसलिये वह एक टांग पर घिसट रही है ।इस स्थिति को जब तक खत्म
नहीं किया जायगा ,उसकी विकलांगता समाप्त नहीं होगी ।हिन्दी क्षेत्र के
विश्वविद्यालय यदि ईमानदारी से कमर कस लें तो दस साल में आसानी से इस काम
को कर सकते हैं।
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