18 सितम्बर 2015 जुरहरा से डीग , अलवर यात्रा में
अपने गांव जुरहरा से अलवर आ रहा हूं।सुबह अखबार वाली गाडी डीग तक आती है। डीग से अलवर के लिये पैसेन्जर रेल मिलती है।डीग में सुबह के आठ बज गये हैं ।रेल का इंतजार है ।सामने रेल आती दिखाई दे रही है।यह ब्रज का इलाका है।इन दिनों डीग में लठावन का मेला चल रहा है।डीग भरतपुर रियासत के अठारहवीं सदी के एक प्रतापी राजा जवाहर सिंह के नाम पर इस मेले का नाम जवाहर प्रदर्शनी रखा गया है । डीग के विश्व प्रसिद्ध महल भवन कहलाते हैं।इनमें गोपाल भवन सबसे अनूठा है।लाल पत्थर पर कुराई का बहुत बारीक कलात्मक काम कराया गया है।आगरा में बने ताजमहल के बाद इनका निर्माण हुआ था।सौन्दर्य संरचना में ये ताज से बहुत पीछे नहीं हैं।इस मौके पर इन महलों में रंग बिरंगे मनमोहक फव्वारों की छटा देखते बनती है।डीग में एक जमीनी दुर्ग उस समय बनाया गया था.जब डीग भरतपुर के पहले राजा बदन सिंह ने डीग को अपनी रियासत की राजधानी बनाया था ।भरतपुर को इसके बाद बसाया गया ।वहां सूरजमल ने एक ऐसा दुर्ग बनवाया जिसे अंगरेज जरनल लेक भी जीतने में कामयाब नहीं हो सका।इस घटना के बाद इस किले को लोहागढ कहा जाने लगा।
रेल में कुछ यात्री नासिक कुम्भ से होकर आये हैं।काया माया की ऐसे चर्चा कर रहे हैं जैसे जीवन का सारा रहस्य इनको मालूम हो चुका है।यही वह सामान्य लोक है जो आज भी मिथकों की दुनिया में जीता है और प्रत्यक्ष दुनिया से अधिक बडा सच मिथकीय संसार को मानता है।अभी अभी डिब्बे में एक जोगी वेषधारी व्यक्ति अपने ऊपर देवी के आने का नाटक कर रहा है और लोग हैं कि उसे सच मान रहे हैं ।मेरे बगल में बैठा एक यात्री सहयात्रियों को बतला रहा है कि साब चमत्कार तो होता है।जब मैने इसका प्रतिवाद किया तो कहने लगा कि आप मानें या न मानें साब हम तो मानते हैं ।संकट यह है कि डिब्बे में मानने वालों की तादाद ज्यादा थी।ऐसा ही है आज का लोकमानस .जिसकी वजह से ,देश में सही और सच्ची सेक्युलर राजनीतिक संस्कृति नहीं पनप पाती।ऐसा लोकमानस ही साम्प्रदायिक राजनीति के लिये एक मजबूत आधार मुहैया कराता है।
लगभग एक माह की भादों की कडकडी और चिलचिली धूप पडने के बाद आज आसमान में उतरती बरसात के मेघ घिर आए हैं।कामना यही है कि बरस पडें और किसान जन का संकट हरण करें ।उसका इस दुनिया में कोई नहीं ।यही वजह है कि वह आज भी आदमी की दुनिया से ज्यादा भरोसा मिथकीय दुनिया पर करता है।वह प्रकृति को ज्यादा नहीं जानता ।उसे अप्राकृतिक शक्तियों पर ज्यादा भरोसा है। इसीलिये आज भी वह वर्षा के लिये यज्ञ करता है,चामुण्डा का जागरण करता है।ज्योतिषियों से पूछता है कि पंडित जी बरसात कब होगी। उसे मौसम विज्ञान पर उतना भरोसा नहीं जितना अपने आसपास के पारम्परिक फलित ज्योतिषियों पर है।बहरहाल,गाडी हर स्टेशन पर ठहर रही है।अलवर में अपने कामकाज करने के लिये नगर ,गोविन्दगढ ,रामगढ स्टेशनों से सवारियां उतरी चढी हैं।कोई आ रहा है तो कोई जा रहा है ।यही क्रम है संसार का।डीग से जब यह गाडी चली थी तो यहां के प्रसिद्ध बेरों के बागों के बीच से होकर गुजरी थी।डीग के बेरों की तरह अलवर में रामगढ और तिजारा के बागू बेर मशहूर हैं। माघ फागुन के आसपास इनकी बहार रहती है।डीग से अलवर की तरफ अगला स्टेशन आता है बेढम।यहां के एक अलगोजा वादक थे जवाहर सिंह बेढम ,दो दोअलगोजे एक साथ बहुत सुरीले अन्दाज में झूम झूमकर बजाते।ब्रज के रसिया बजाते तो लोटपोट कर देते।दो साल पहले ही उनका देहावसान हुआ ।रेल जब जब बेढम से गुजरती है उनकी याद आए बिना नहीं रहती।ग्वारिया थे,बालपन और जवानी में गाय चराईं,तभी अलगोजा वादन की कला सीख ली,जैसे अलवर के मशहूर भपंग वादक जहूर खां ने भपंग वादन की कला बीडी बेचते हुए सीखी।कला का निराला संसार ही है जो जिन्दगी को अलग तरीके से संवारता है।
गाडी अपनी गति से चल रही है।आसमान में मेघ अपनी गति से।मौसम में नमी आती जा रही है।यद्यपि खेतों में खडा बाजरा वर्षा के अभाव में सूख रहा है।बाजरे की बालों पर अजीब तरह की उदासी पसरी हुई है जो किसान के चेहरे की लकीरों में दिखाई देती है।खेतों में दूसरी बडी फसल कपास की है।इस समय उसमें डोडी खिल रही है। तुलसी ने साधु चरित्र को कपास के समान कहा है साधु चरित सुभ चरित कपासू।निरस बिसद गुनमय फल जासू।यह शुभ चरित्र खेतों में दूर दूर तक पसरा हुआ है।रेल मार्ग के दोनों तरफ बबूल के पेडों की भरमार है जिनमें इस समय पीले फूलों की पंचायत सी हो रही है।ऊंटवाल स्टेशन निकल चुका है।अलवर आने वाला है।अलवर उतरने वाले यात्री अपना सामान संभाल रहे हैं।जयपुर की ओर यात्रा करने वाले निष्फिक्र बैठे हुए हैं।हमने भी उतरने की तैयारी कर ली है ।दरवाजे पर आकर प्लेटफार्म आने का इंतजार कर रहा हूं।अन्यथा अलवर से चढने वाले यात्री नीचे उतरने नहीं देंगे।
अपने गांव जुरहरा से अलवर आ रहा हूं।सुबह अखबार वाली गाडी डीग तक आती है। डीग से अलवर के लिये पैसेन्जर रेल मिलती है।डीग में सुबह के आठ बज गये हैं ।रेल का इंतजार है ।सामने रेल आती दिखाई दे रही है।यह ब्रज का इलाका है।इन दिनों डीग में लठावन का मेला चल रहा है।डीग भरतपुर रियासत के अठारहवीं सदी के एक प्रतापी राजा जवाहर सिंह के नाम पर इस मेले का नाम जवाहर प्रदर्शनी रखा गया है । डीग के विश्व प्रसिद्ध महल भवन कहलाते हैं।इनमें गोपाल भवन सबसे अनूठा है।लाल पत्थर पर कुराई का बहुत बारीक कलात्मक काम कराया गया है।आगरा में बने ताजमहल के बाद इनका निर्माण हुआ था।सौन्दर्य संरचना में ये ताज से बहुत पीछे नहीं हैं।इस मौके पर इन महलों में रंग बिरंगे मनमोहक फव्वारों की छटा देखते बनती है।डीग में एक जमीनी दुर्ग उस समय बनाया गया था.जब डीग भरतपुर के पहले राजा बदन सिंह ने डीग को अपनी रियासत की राजधानी बनाया था ।भरतपुर को इसके बाद बसाया गया ।वहां सूरजमल ने एक ऐसा दुर्ग बनवाया जिसे अंगरेज जरनल लेक भी जीतने में कामयाब नहीं हो सका।इस घटना के बाद इस किले को लोहागढ कहा जाने लगा।
रेल में कुछ यात्री नासिक कुम्भ से होकर आये हैं।काया माया की ऐसे चर्चा कर रहे हैं जैसे जीवन का सारा रहस्य इनको मालूम हो चुका है।यही वह सामान्य लोक है जो आज भी मिथकों की दुनिया में जीता है और प्रत्यक्ष दुनिया से अधिक बडा सच मिथकीय संसार को मानता है।अभी अभी डिब्बे में एक जोगी वेषधारी व्यक्ति अपने ऊपर देवी के आने का नाटक कर रहा है और लोग हैं कि उसे सच मान रहे हैं ।मेरे बगल में बैठा एक यात्री सहयात्रियों को बतला रहा है कि साब चमत्कार तो होता है।जब मैने इसका प्रतिवाद किया तो कहने लगा कि आप मानें या न मानें साब हम तो मानते हैं ।संकट यह है कि डिब्बे में मानने वालों की तादाद ज्यादा थी।ऐसा ही है आज का लोकमानस .जिसकी वजह से ,देश में सही और सच्ची सेक्युलर राजनीतिक संस्कृति नहीं पनप पाती।ऐसा लोकमानस ही साम्प्रदायिक राजनीति के लिये एक मजबूत आधार मुहैया कराता है।
लगभग एक माह की भादों की कडकडी और चिलचिली धूप पडने के बाद आज आसमान में उतरती बरसात के मेघ घिर आए हैं।कामना यही है कि बरस पडें और किसान जन का संकट हरण करें ।उसका इस दुनिया में कोई नहीं ।यही वजह है कि वह आज भी आदमी की दुनिया से ज्यादा भरोसा मिथकीय दुनिया पर करता है।वह प्रकृति को ज्यादा नहीं जानता ।उसे अप्राकृतिक शक्तियों पर ज्यादा भरोसा है। इसीलिये आज भी वह वर्षा के लिये यज्ञ करता है,चामुण्डा का जागरण करता है।ज्योतिषियों से पूछता है कि पंडित जी बरसात कब होगी। उसे मौसम विज्ञान पर उतना भरोसा नहीं जितना अपने आसपास के पारम्परिक फलित ज्योतिषियों पर है।बहरहाल,गाडी हर स्टेशन पर ठहर रही है।अलवर में अपने कामकाज करने के लिये नगर ,गोविन्दगढ ,रामगढ स्टेशनों से सवारियां उतरी चढी हैं।कोई आ रहा है तो कोई जा रहा है ।यही क्रम है संसार का।डीग से जब यह गाडी चली थी तो यहां के प्रसिद्ध बेरों के बागों के बीच से होकर गुजरी थी।डीग के बेरों की तरह अलवर में रामगढ और तिजारा के बागू बेर मशहूर हैं। माघ फागुन के आसपास इनकी बहार रहती है।डीग से अलवर की तरफ अगला स्टेशन आता है बेढम।यहां के एक अलगोजा वादक थे जवाहर सिंह बेढम ,दो दोअलगोजे एक साथ बहुत सुरीले अन्दाज में झूम झूमकर बजाते।ब्रज के रसिया बजाते तो लोटपोट कर देते।दो साल पहले ही उनका देहावसान हुआ ।रेल जब जब बेढम से गुजरती है उनकी याद आए बिना नहीं रहती।ग्वारिया थे,बालपन और जवानी में गाय चराईं,तभी अलगोजा वादन की कला सीख ली,जैसे अलवर के मशहूर भपंग वादक जहूर खां ने भपंग वादन की कला बीडी बेचते हुए सीखी।कला का निराला संसार ही है जो जिन्दगी को अलग तरीके से संवारता है।
गाडी अपनी गति से चल रही है।आसमान में मेघ अपनी गति से।मौसम में नमी आती जा रही है।यद्यपि खेतों में खडा बाजरा वर्षा के अभाव में सूख रहा है।बाजरे की बालों पर अजीब तरह की उदासी पसरी हुई है जो किसान के चेहरे की लकीरों में दिखाई देती है।खेतों में दूसरी बडी फसल कपास की है।इस समय उसमें डोडी खिल रही है। तुलसी ने साधु चरित्र को कपास के समान कहा है साधु चरित सुभ चरित कपासू।निरस बिसद गुनमय फल जासू।यह शुभ चरित्र खेतों में दूर दूर तक पसरा हुआ है।रेल मार्ग के दोनों तरफ बबूल के पेडों की भरमार है जिनमें इस समय पीले फूलों की पंचायत सी हो रही है।ऊंटवाल स्टेशन निकल चुका है।अलवर आने वाला है।अलवर उतरने वाले यात्री अपना सामान संभाल रहे हैं।जयपुर की ओर यात्रा करने वाले निष्फिक्र बैठे हुए हैं।हमने भी उतरने की तैयारी कर ली है ।दरवाजे पर आकर प्लेटफार्म आने का इंतजार कर रहा हूं।अन्यथा अलवर से चढने वाले यात्री नीचे उतरने नहीं देंगे।
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