पहले जब गांव आता था
अपने खेतों ,स्कूल और पुनाहना मेवात की ओर जाने वाली सडक के एक किनारे पर पोखर .,
पोखर किनारे पीपल नीम के छोटे बडे बजुर्ग दरख्त देखता था
लगता था वे मुझसे पूछ रहे हैं
कि बहुत दिनों में आए हो
उस जगह को भूल गए
जहां गाय के खूंटे के पास
तुम्हारा नाल गढा है
इसी गाय के खूंटे पर
तुम्हारी लटूरियों को उतारा गया था
अब अलवर जाकर बडी बडी बातें करते हो
समाज परिवर्तन की
क्रान्ति की
साहित्य के सौन्दर्य विधान की
दुनिया को बदलने की
यही तो करता है
हर कोई
पर सब कुछ भूलकर
जब अपना पेट भर लेता है
उपदेश के तरु से फूल झडते हैं
जब अपनी एक कोठी बंगला
किसी शहर में बन जाता है
कहते हैं कि ईमानदारी और गरीबी में
एक रिश्ता होता है
जैसे होता है अमीरी और बेईमानी में
अमीरी अपना गांव जनपद देश
सब भूल जाती है
यह गरीबी और खेती ही है
जो अपना गांव देश जनपद
न भूल पाती है न छोड पाती है
हमको मालूम हुआ है
तुम वहां जाकर अपनी ब्रज मेवाती को
भूल गये हो बच्चों को अंगरेजी निष्णात
बनाकर फख्र करते हो
हमको भी ललचाते हो
हम भी तुम्हारे पिछलग्गू हो गये हैं
हमको भी हवा लग चुकी है तुम्हारी
अब हमारे दिन भी ज्यादा नहीं हैं
अबकी बार जब गांव आओगे
हमको यहां नहीं पाओगे
बाजार पोखर की तरफ बढ रहा है
उसके हाथ लम्बे हैं
राक्षस भी उसके सामने कुछ नहीं
उसके दांत दैत्यों से बडे हैं
उसकी गिरफ्त से कौन बचा है
सचमुच इस बार जब गांव आया हूं
तो पोखर के वे पेड कहीं नजर नहीं आते
अब वहां
दुकानों की नींव खुद रही है ।
अपने खेतों ,स्कूल और पुनाहना मेवात की ओर जाने वाली सडक के एक किनारे पर पोखर .,
पोखर किनारे पीपल नीम के छोटे बडे बजुर्ग दरख्त देखता था
लगता था वे मुझसे पूछ रहे हैं
कि बहुत दिनों में आए हो
उस जगह को भूल गए
जहां गाय के खूंटे के पास
तुम्हारा नाल गढा है
इसी गाय के खूंटे पर
तुम्हारी लटूरियों को उतारा गया था
अब अलवर जाकर बडी बडी बातें करते हो
समाज परिवर्तन की
क्रान्ति की
साहित्य के सौन्दर्य विधान की
दुनिया को बदलने की
यही तो करता है
हर कोई
पर सब कुछ भूलकर
जब अपना पेट भर लेता है
उपदेश के तरु से फूल झडते हैं
जब अपनी एक कोठी बंगला
किसी शहर में बन जाता है
कहते हैं कि ईमानदारी और गरीबी में
एक रिश्ता होता है
जैसे होता है अमीरी और बेईमानी में
अमीरी अपना गांव जनपद देश
सब भूल जाती है
यह गरीबी और खेती ही है
जो अपना गांव देश जनपद
न भूल पाती है न छोड पाती है
हमको मालूम हुआ है
तुम वहां जाकर अपनी ब्रज मेवाती को
भूल गये हो बच्चों को अंगरेजी निष्णात
बनाकर फख्र करते हो
हमको भी ललचाते हो
हम भी तुम्हारे पिछलग्गू हो गये हैं
हमको भी हवा लग चुकी है तुम्हारी
अब हमारे दिन भी ज्यादा नहीं हैं
अबकी बार जब गांव आओगे
हमको यहां नहीं पाओगे
बाजार पोखर की तरफ बढ रहा है
उसके हाथ लम्बे हैं
राक्षस भी उसके सामने कुछ नहीं
उसके दांत दैत्यों से बडे हैं
उसकी गिरफ्त से कौन बचा है
सचमुच इस बार जब गांव आया हूं
तो पोखर के वे पेड कहीं नजर नहीं आते
अब वहां
दुकानों की नींव खुद रही है ।
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