Friday 15 February 2013

केशव तिवारी हमारे समय के उन कवियों में हैं जो बिना शोर मचाये व्यापक जीवनधर्मी कविता रचते रहने में विश्वास  करते हैं ।इसकी वजह है उनका निरंतर श्रमशील जीवन  और जीवित चरित्रों के बीच में संलग्न संवेदनशीलता के साथ रहना ।मैंने उनके साथ रहकर स्वयम देखा है कि वे कैसे एक मेहनतकश को अभावग्रस्तता में जिन्दगी गुजारते देखकर विचलित हो जाते हैं और उसके लिए वह सब करते हैं ,जिसे सामान्यतया लोग शब्द-सहानुभूति देकर विदा कर देते हैं ।उनकी एक कविता है छन्नू खान और उनकी सारंगी वादन कला पर , यह बांदा का एक जीवित चरित्र था ,जो केशव जी की जिन्दगी में उनके घर-परिवार का तरह शामिल था ।कहने का तात्पर्य यह है कि केशव कविता लिखते ही नहीं वरन उसे जीते भी हैं ।जो जीकर कविता लिखता है , वही कबीर ,तुलसी,सूर,मीरा ,निराला , मुक्तिबोध ,नागार्जुन,केदार  की काव्य-परम्परा को आगे ले जाने की क्षमता रखता है । वे केदार बाबू की काव्य-पाठशाला के सजग विद्यार्थी रहे हैं , यह हम सब जानते हैं ।जिन्होंने भी दुनिया में बड़ी रचना की है , उन्होंने अपने जीवन और कविता के सेतु को मिलाये रखा है ।केशव की कविताओं में मुझे उनके जीवन और कविता का एक मजबूत सेतु नज़र आता है , जो उनकी कविता को सामान्य और विशिष्ट की द्वन्द्वात्मकता में आज की कविता बनाता है ।उनकी एक खासियत और है --अपनी परम्परा से गहरा रिश्ता ।यह आज के बहुत कम कवियों में देखने को मिलता है ।परम्परा भी कविता की नहीं , पूरे जीवन की ।उनकी रचना का आधार बहुत मजबूत है , जो उनको भविष्य के एक संभावनाशील कवि के रूप में स्थापित करता है ।।


 

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