Sunday 18 December 2011

बेचारे

 कवि,
कथाकार,
प्रोफेसर,आलोचक,
रीडर,
निबंधकार,आयोजक,
कितना-कितना
तरसतें हैं
नामवर के
एक शब्द को
अमीर तरसता जैसे
हराम की दौलत को |

चींटी- सी
आकांक्षा  पाले
ये मसक - हृदय
आसमान से कभी
निगाहें भी
मिला पायेंगें
बेचारे ??

No comments:

Post a Comment