Sunday 18 December 2011

परिधान


सूख रहे परिधान
छतों पर बंधी
अलगनियों पर
रंग-बिरंगे |

फ़ौज की तरह
कतारों में अनुशासित, एकताबद्ध
ध्यानमग्न ऋषि से
ये छोटे - बड़े
उजले - चमकीले
रंगहीन फीकी मुद्राओं में
सभी तरह के
नए पुराने
अधोवस्त्र
सूखते साथ-साथ

अंगिया,चोली,पेटीकोट-पजामों का
अन्तरंग,बहिरंग
सब खुले में ,
जैसे गंगाएं
रंग-बिरंगी
विहंसती आकाश में |

हवा में
लहराते - फहराते
मुकाबला करते
डटे रहते
अपनी जगह
जैसे वचन की  दृढ़ता में
बंधा आदमी कोई कोई

सजेंगे जब
आदमी की देह पर
इतरायेंगे ऐठेंगें
अकड़ेंगे दंभ में
शक्ति से
बदल जाता स्वभाव
अभिजन का
कितनी बदल जाएगी दुनिया

तब ये
नही रहेंगे कपडे
न परिधान
न पौशाक
न वेशभूषा |

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