प्रिय भाई पीयूष जी ,
आपका अशोक वाजपेयी जी की कविताओं पर लिखने का आमंत्रण मिला ,खुशी हुई कि आपने मुझे इसके क़ाबिल समझा। जबकि मैं जानता हूँ कि मेरे अपने शिविरों में ही मैं कहीं नहीं हूँ। कविता पर लिखना मेरा शगल नहीं है वरन यह मेरे लिए जीवन की उस सौंदर्यात्मक लय की कलात्मक अभिव्यक्ति को पहचानने का उद्यम है ,जो हमारे जीवन की अपूर्णताओं को और अधूरेपन को ,उसकी रिक्तता को भरने का काम करती है। इसीलिये हर युग के आगे -पीछे बढ़ते-हटते जीवन का हिसाब रखने के लिए आत्मा की आवाज के रूप में कविता लिखी जाती रही है। मुझे अच्छा लगता यदि मैं स्वयं को वाजपेयी जी की कविताओं का सुसंगत अध्येता पाता।मैं स्वीकार करता हूँ कि उनकी काव्यसम्मत गम्भीरता को उसकी सम्पूर्णता में पकड़ पाने में मैं स्वयं को सक्षम नहीं पाता। लिहाजा उनकी कविता के साथ न्याय कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा।आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
प्रसन्न होंगे , जीवन सिंह
आपका अशोक वाजपेयी जी की कविताओं पर लिखने का आमंत्रण मिला ,खुशी हुई कि आपने मुझे इसके क़ाबिल समझा। जबकि मैं जानता हूँ कि मेरे अपने शिविरों में ही मैं कहीं नहीं हूँ। कविता पर लिखना मेरा शगल नहीं है वरन यह मेरे लिए जीवन की उस सौंदर्यात्मक लय की कलात्मक अभिव्यक्ति को पहचानने का उद्यम है ,जो हमारे जीवन की अपूर्णताओं को और अधूरेपन को ,उसकी रिक्तता को भरने का काम करती है। इसीलिये हर युग के आगे -पीछे बढ़ते-हटते जीवन का हिसाब रखने के लिए आत्मा की आवाज के रूप में कविता लिखी जाती रही है। मुझे अच्छा लगता यदि मैं स्वयं को वाजपेयी जी की कविताओं का सुसंगत अध्येता पाता।मैं स्वीकार करता हूँ कि उनकी काव्यसम्मत गम्भीरता को उसकी सम्पूर्णता में पकड़ पाने में मैं स्वयं को सक्षम नहीं पाता। लिहाजा उनकी कविता के साथ न्याय कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं होगा।आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
प्रसन्न होंगे , जीवन सिंह
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