बंधुवर एकान्त जी ,
वागर्थ का नया अंक मिला। धन्यवाद। इसके लोकमत में प्रकाशित
कविता-चोरी प्रसंग पर मेरे मन में कुछ बात यूँ आई ---------
कवि जो
चोरी करता है शब्दों की
नहीं जानता
कि नहीं पहुंचा जा सकता
मंजिल तक , बैठे बैठे
अपने पैरों से पिपीलिका
उतर जाती है
दुर्लंघ्य पर्वतों के पार
कोयल अपने स्वर में गाती है
तभी मालूम पड़ता है कि
वसंत आ गया है
ऊँट को सुई के छेद से
मत निकालो कवि
यह काम तुम्हारे बस का नहीं
यह जीवन सरिता
सबके लिए खुली है
चुल्लू भर पानी
अंजलि में भर लेने से
वह नदी नहीं हो जाती
कविता कैसे हो सकती है
पानी के बिना
कवि जो चोरी करता है
शब्दों की
क्या इतना भी नहीं जानता ?
जीवन सिंह , अलवर , राजस्थान
मोबाइल ---09785010072
वागर्थ का नया अंक मिला। धन्यवाद। इसके लोकमत में प्रकाशित
कविता-चोरी प्रसंग पर मेरे मन में कुछ बात यूँ आई ---------
कवि जो
चोरी करता है शब्दों की
नहीं जानता
कि नहीं पहुंचा जा सकता
मंजिल तक , बैठे बैठे
अपने पैरों से पिपीलिका
उतर जाती है
दुर्लंघ्य पर्वतों के पार
कोयल अपने स्वर में गाती है
तभी मालूम पड़ता है कि
वसंत आ गया है
ऊँट को सुई के छेद से
मत निकालो कवि
यह काम तुम्हारे बस का नहीं
यह जीवन सरिता
सबके लिए खुली है
चुल्लू भर पानी
अंजलि में भर लेने से
वह नदी नहीं हो जाती
कविता कैसे हो सकती है
पानी के बिना
कवि जो चोरी करता है
शब्दों की
क्या इतना भी नहीं जानता ?
जीवन सिंह , अलवर , राजस्थान
मोबाइल ---09785010072
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