गीत
अँधेरे में
रात ब्याध के
-घेरे में
दिन कटा
अँधेरे में |
खंड-खंड पाखण्ड कि
इतना
कोई बिरला बूझे |
तकनीकी तलवारें
तनती
दीपशिखा से जूझे |
मन का औरंगजेब
छिपा
शैतानी डेरे में |
ऐसा बिजली-समय
अभी तक
किसने था देखा |
व्योम-भाल पर
खिंची
काल की
विद्युत्-गति रेखा |
सांस घुटी सूरज की
लेकिन
सूखे झेरे में |
पोखर -तट के
पेड़ निरखते
सूनी आँखों से |
रक्त टपकता
रूप-विहग के
श्रम की पाँखों से |
सूखी नदी ,
पहाडी नंगी
जंगल-खेरे में |
मन-मिरगा को
चैन नहीं
आकाश गहा
तब भी |
बीहड़ बाजारों का
बीयाबान रहा
तब भी |
सारी उमर
गुजारी हंसा
तेरे- मेरे में |
अँधेरे में
रात ब्याध के
-घेरे में
दिन कटा
अँधेरे में |
खंड-खंड पाखण्ड कि
इतना
कोई बिरला बूझे |
तकनीकी तलवारें
तनती
दीपशिखा से जूझे |
मन का औरंगजेब
छिपा
शैतानी डेरे में |
ऐसा बिजली-समय
अभी तक
किसने था देखा |
व्योम-भाल पर
खिंची
काल की
विद्युत्-गति रेखा |
सांस घुटी सूरज की
लेकिन
सूखे झेरे में |
पोखर -तट के
पेड़ निरखते
सूनी आँखों से |
रक्त टपकता
रूप-विहग के
श्रम की पाँखों से |
सूखी नदी ,
पहाडी नंगी
जंगल-खेरे में |
मन-मिरगा को
चैन नहीं
आकाश गहा
तब भी |
बीहड़ बाजारों का
बीयाबान रहा
तब भी |
सारी उमर
गुजारी हंसा
तेरे- मेरे में |
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