प्रामाणिक जबाव दिया है आशुतोष जी ,हर भाषा की अपनी प्रकृति,इतिहास और परम्परा होती है |हिन्दी की भी अपनी समृद्ध परम्परा है फिर हिन्दी क्षेत्र इतना विशाल और विविधता सम्पन्न है कि उसकी रचनात्मकता के छोर उसकी विविधता में ही पकडे जा सकते हैं |दूर की चीजें सभी को सुहावनी लगती हैं |
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