Monday, 20 February 2012

बहुत सही विश्लेषण किया है |ऐतिहासिक और द्वंद्वात्मक परिप्रेक्ष्य के बिना केवल राजनीति की भाषा में चीजों को समझे जाने की प्रक्रिया ने हमेशा गड़बड़ी की है |उर्दू की जमीन को जाने बिना हम विभ्रम की गलियों में भटकते रहेंगे या फिर उनको साम्प्रदायिकता का रंग दे देंगे |आपने उर्दू की जमीन से उसकी हकीकत को समझा है |सही परिप्रेक्ष्य के गंभीर  चिंतन-परक  आलेख के लिए  बधाई

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