Tuesday, 7 May 2013

मुझे तुम्हारे
विकास से ज्यादा
चैत  में फूला हुआ
रक्ताभ पलाश का
यह पेड़ लगता है
जो अरावली की सूनी गोद में
सीना ताने
खडा हुआ है
यह किसी विकास-योजना में
शामिल नहीं है
पूरी तरह स्वच्छंद ,निर्भीक
साहसी और जोखिम उठाने वाला
पद , पुरस्कार और सम्मानों की लालसा से मुक्त
यह ढाक  का पेड़


जब यह मन भरकर
फूलता है तो
किसान का मन इससे भी
ज्यादा फूलता है
वह अपने संवत का अनुमान
इसको फूलते देख
लगाता है
 यह अनुभवों को
तराशकर  मेरी हथेली पर अचक
रखकर बिना कुछ कहे
खेत की मैंड पर
खिलखिलाता रहता है
 काश इसका स्वभाव
मेरे रक्त में होता ।
















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