Sunday, 19 May 2013

करारा जबाव दिया है आपने । जिनके हाथ में जन के नाम पर व्यक्ति की सत्ता है  बहस से शायद ही कभी कोई सरोकार रहा हो । तर्क-शत्रुओं के पास चूंकि एक अखबार के रूप में हल्दी की गाँठ है तो वे क्यों  न खुद को पंसारी समझें । कबीर ने कहा था ऐसे ही लोगों से -----संस्किरत है कूप जल भासा बहता नीर । इस बहते नीर की विशेषता होती है दूसरी छोटी नदियों के नीर को समेट  कर सागर तक पंहुचाना । इस प्रक्रिया में छोटी नदी का नाम बदल जाता है । बहते नीर की तरह बहने वाली हिंदी में " गाली-गलौच " ही चलता है । च यहाँ कीचड फैलाने की व्यंजना कर रहा है ।

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