करारा जबाव दिया है आपने । जिनके हाथ में जन के नाम पर व्यक्ति की सत्ता है
बहस से शायद ही कभी कोई सरोकार रहा हो । तर्क-शत्रुओं के पास चूंकि एक
अखबार के रूप में हल्दी की गाँठ है तो वे क्यों न खुद को पंसारी समझें ।
कबीर ने कहा था ऐसे ही लोगों से -----संस्किरत है कूप जल भासा बहता नीर ।
इस बहते नीर की विशेषता होती है दूसरी छोटी नदियों के नीर को समेट कर सागर
तक पंहुचाना । इस प्रक्रिया में छोटी नदी का नाम बदल जाता है । बहते नीर
की तरह बहने वाली हिंदी में " गाली-गलौच " ही चलता है । च यहाँ कीचड फैलाने
की व्यंजना कर रहा है ।
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