पिछले दिनों में जब तोता बहुत चर्चा में रहा तो मुझे रघुवीर सहाय की एक
जमाने में मजाकिया तौर पर लिखी गयी कविता की पंक्तियाँ बहुत याद आती रही ।
कविता की अर्थ-व्यंजना किस तरह काल का अतिक्रमण कर जाती है , इससे जाना जा
सकता है । कविता तो सभी को पता है फिर भी उद्धृत कर रहा हूँ --------
अगर कहीं मैं तोता होता
तो क्या होता
तो तो तो तो
ता ता ता ता
होता होता होता
अगर कहीं मैं तोता होता
तो क्या होता
तो तो तो तो
ता ता ता ता
होता होता होता
No comments:
Post a Comment