Tuesday 14 May 2013

पिछले दिनों में जब तोता बहुत चर्चा में रहा तो मुझे रघुवीर सहाय की एक जमाने में मजाकिया तौर पर लिखी गयी कविता की पंक्तियाँ बहुत याद आती रही । कविता की अर्थ-व्यंजना किस तरह काल का अतिक्रमण कर जाती है , इससे जाना जा सकता है । कविता तो सभी को पता है फिर भी उद्धृत कर रहा हूँ --------
             अगर कहीं मैं तोता होता
             तो क्या होता
            तो  तो  तो  तो
            ता   ता  ता ता 
            होता होता होता

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