Wednesday 10 October 2012

आदरणीय भाई ,रमाकांत जी को न कहने में बड़ा जोर आयगा |उन्होंने जिस वृक्ष के मधुर फलों का अमृत- आस्वादन कर लिया है उस वृक्ष की छाया को वे आसानी से कैसे छोड़ेंगे |कृति-ओर के सम्पादन ने उनकी ख्याति को जैसे पंख लगा दिए , यह बात वे अच्छी तरह से जानते हैं |इससे पहले राजस्थान से बाहर कितने लोग जानते थे ? मुझे भी लगता है वे अवसाद से अब जल्दी उबर जायेंगे काफी समय हो चुका है |थोड़ा इंतज़ार और कर लीजिये |एकाध बार स्वास्थ्य के बहाने पूछ भी लीजिये |संभव हो तो ,कामेश्वर जी को भेज भी दीजिये ,किन्तु तभी जब उनकी तरफ से कोई संकेत मिले अन्यथा कामेश्वर जी को अच्छा नहीं लगेगा |बहरहाल ,कोई रास्ता अवश्य निकलेगा |अब पूंजीवादी व्यवस्था के साहित्य-संस्थान केवल पूंजी के चाकर बन कर रह गए हैं ,उनकी अध्यक्षता करना भी पूंजी की हाजिरी बजाना ही है |आपने वेद व्यास को मना कर दिया ,अच्छा किया |पूंजी की प्रगतिशीलता का मानवीय चेहरा अब साम्राज्यवाद ने क्षत-विक्षत कर दिया है |लेकिन राजस्थान में दोनों तरफ से मरना है |साम्प्रदायिकता का प्रेत भी तो पीछा नहीं छोड़ता |इसका लाभ पूंजी के ठगों को मिलता रहा है |ह्यूगो शावेज की चौथी बार अमरीका की नाक के नीचे जीत उत्साह्दायी है |पृथ्वी कभी वीर-विहीन नहीं होती |इस योद्धा को सलाम |भाभी जी को प्रणाम |आदर सहित ------आपका ------जीवन सिंह

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