Thursday 4 October 2012

प्रिय नूर भाई ,सलाम मेवात में लगातार निखार आ रहा है |तायल साहब और आप सभी की मेहनत रंग ला रही है |संस्कृति को ----मेवात की संस्कृति को काफी जगह दे रहे हैं आप |जबकि समय कुछ इतना चालू है कि संस्कृति के नाम पर केवल नाच-गाना परोस कर बतला दिया जाता है कि संस्कृति इसी को कहते हैं |संस्कृति में भाव और विचार भी अपनी जगह रखते हैं ,इस बात को अब कितने से लोग मानते और समझते हैं |आवारा पूंजी ने सब कुछ गुड-गोबर कर दिया है |कबीर ने इसी लिए माया को महाठगिनी कहा था |आज तो दुनिया पर यही ठगिनी राज कर रही है |इसमें हमारा किसान-मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा पिसता है |मेहनतकश की सबसे ज्यादा मौत है |मेवाती किसान की मौजूदा जिन्दगी का सही सर्वे करा कर देखा जाय तो बड़े भयावह परिणाम सामने आयेंगे | 'हुक्का पे '---स्तम्भ ठेठ मेवाती के मुहावरे में अपना असर अवश्य बना रहा होगा |इससे लोग अपनी आत्मा को पहचानेगे |इस बोली की अपनी अनूठी ठसक है |बेबाकी से कोई अपनी बात कहने की कला सीखना चाहता है तो कोई मेवाती से सीखे |सिद्दीक भाई को मेरी बधाई जरूर दें |यह व्यक्ति के मन का सतम्भ है |एक जमाने में हुक्का सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक रहा है जो ग्रामीण जीवन में आज भी बचा हुआ है और सामूहिकता को बचाए हुए है |शिक्षा और समाज के बीच के ढीले पड़ते हुए और बेहद व्यावसायिक होते जा रहे रिश्ते को 'सलाम मेवात ' और अधिक तार्किक एवं मानवता की पक्षधर दिशा में ले जाये ,---ऐसी कामना करता हूँ |आपकी पूरी टीम को मुबारकबाद | स्वस्थ -प्रसन्न होंगे | --------जीवन सिंह मानवी ,फिलहाल सिडनी , आस्ट्रेलिया

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