Sunday, 30 September 2012

आदरणीय भाई ,
आपका ई-पत्र |मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि यह कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं है |बदलाव इसे मैं केवल साम्राज्यवादी आवारा पूंजी की 'रणनीति 'में मानता हूँ जिससे एक जमाने में दुनिया का जो राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग साम्राज्यवाद से लड़ा करता था ,उसने आवारा पूंजी से हाथ मिलाकर विश्व स्तर पर राजनीति की प्राथमिकताओं को पूंजी के पक्ष में इतना कर दिया है कि किसान-मजदूरों और अन्य मेहनतकशों के समक्ष विश्व -स्तरीय प्रभावी नेतृत्व फिलहाल उभर नहीं पा रहा है |आज लेटिन अमरीका के देशों की श्रम-ताकतों में अवश्य सुगबुगाहट है |मैं इसका सबसे अहम् कारण जागरूक ,अवकाश -भोगी और उच्च वर्ग से दबे हुए (आत्म-सम्मान या आंतरिक पराधीनता के अर्थ में ) मध्य -वर्ग की निरंतर बढ़ती उदासीनता को मानता हूँ |क्या वजह है कि नरसिंह राव से लगाकर मनमोहन सिंह तक राजनीति का बलाघात 'निम्न वर्ग '(गरीब -मेहनतकश )से जी.डी.पी .ग्रोथ के नाम पर उच्च-अमीर वर्ग की तरफ हो गया है और इसे मध्य-वर्ग ने लगभग स्वीकृति दे दी है |इसी का असर है कि मध्य वर्ग की जिन्दगी जीने वाला कवि- समाज ऊपर की ओर ज्यादा देखने लगा है बजाय ,नीचे की ओर |आप जैसे कितने से कवि हैं जो चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख कर रचना कर रहे हैं |बहरहाल ,चुनौतियां पहाड़ की तरह सामने हैं |संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है |बिना निराश हुए लगातार अपने ज़मीर को बचाते हुए चलते चले जाना है |अकेला पड़कर भी |पहले भी अनेक लोग ऐसे चले हैं |स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे |आदर सहित ----आपका ------जीवन सिंह

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