आदरणीय भाई ,
आपका ई-पत्र |आपने सही कहा है कि यह बहुपक्षीय लड़ाई है |वर्ग-शत्रुओं से तो है ही ,उन आस्तीन के साँपों से भी है जो बात तो सुधा की करते हैं ,लेकिन परिणाम देते हैं विष का | जो लोक को मानते हैं उनको भी और गहरे में उतरने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब कि जीवनानुभवों को व्यापक बनाते रहा जाय तथा विचारधारा की रोशनी को तेज किया जाय |एक बार के प्राप्त अनुभवों से जिन्दगी भर काम नहीं चल सकता जब कि चीजें बहुत तेजी से बदल रही हैं |सोवियत संघ के विघटन और उत्तर-आधुनिकता के विमर्श प्रचार ने विचारधारा के काम में गहरी सेंध लगाई है |मध्यवर्गीय आकांक्षाओं ने इसमें पलीता लगाने तथा प्रलेस -जलेस के नेतृत्व की दिग्भ्रम स्थिति ने भटकाव पैदा किया है |बहरहाल, जो सच है ,वह तो है ही |ऐसी स्थितियों में भी जब यह सुनने को मिलता है कि राजेश्वर सक्सेना साहब ने छत्तीसगढ़ सरकार का दो लाख का पुरस्कार अपने जीवन- मूल्यों के चलते ठुकरा दिया ,तो हौसला आफजाई होती है कि पृथ्वी वीर-विहीन नहीं है |प्रसन्न होंगे |---आपका ----जीवन सिंह
आपका ई-पत्र |आपने सही कहा है कि यह बहुपक्षीय लड़ाई है |वर्ग-शत्रुओं से तो है ही ,उन आस्तीन के साँपों से भी है जो बात तो सुधा की करते हैं ,लेकिन परिणाम देते हैं विष का | जो लोक को मानते हैं उनको भी और गहरे में उतरने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब कि जीवनानुभवों को व्यापक बनाते रहा जाय तथा विचारधारा की रोशनी को तेज किया जाय |एक बार के प्राप्त अनुभवों से जिन्दगी भर काम नहीं चल सकता जब कि चीजें बहुत तेजी से बदल रही हैं |सोवियत संघ के विघटन और उत्तर-आधुनिकता के विमर्श प्रचार ने विचारधारा के काम में गहरी सेंध लगाई है |मध्यवर्गीय आकांक्षाओं ने इसमें पलीता लगाने तथा प्रलेस -जलेस के नेतृत्व की दिग्भ्रम स्थिति ने भटकाव पैदा किया है |बहरहाल, जो सच है ,वह तो है ही |ऐसी स्थितियों में भी जब यह सुनने को मिलता है कि राजेश्वर सक्सेना साहब ने छत्तीसगढ़ सरकार का दो लाख का पुरस्कार अपने जीवन- मूल्यों के चलते ठुकरा दिया ,तो हौसला आफजाई होती है कि पृथ्वी वीर-विहीन नहीं है |प्रसन्न होंगे |---आपका ----जीवन सिंह
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