Wednesday, 5 September 2012

खरे जी की बातों में दम है और बात को कहने का सलीका उनको आता है ,| हाँ , यह सही है कि कई बार उनकी भाषा में रौद्र भाव कुछ ज्यादा आ जाता है |यह सच कहने का दबाव भी हो सकता है |यदि सच कहने में क्रोध न आए तो सच भोंतरा होकर अपना प्रभाव खो देता है |फिर बात को कहने की अपनी शैली भी होती है |यह उनको तो बुरा लगेगा ही जो कान्हा में कविता और रासलीला का समन्वय कर रहे थे |हम मुक्तिबोध का नाम खूब लेते हैं किन्तु उनसे कुछ सीखते नहीं |मुक्तिबोध ने एक ज़माने के वामपंथी माने जाने वाले लोगों में जब देश को आजादी मिलने के बाद अवसरवाद की बाढ़ आई तो तो वे अपने एक ज़माने के साथी मित्र कवियों के इस अवसरवादी व्यवहार के प्रति अपनी खिन्नता और क्षोभ लिख कर प्रकट किया | उन्होंने अपनी समीक्षाओं और कविताओं में "कवि -चरित्र " को लेकर खूब लिखा है | आज तो इसकी बाढ़ सी आई हुई है |वामपंथ केवल विचारधारा ही नहीं होता बल्कि वामपंथी चरित्र भी होता है |खरे जी ने भीतर तक जाकर उसका उदघाटन करके बहुत अच्छा किया है |अंतर्वस्तु और उसकी शैली तथा सच कहने के साहस के लिए उनको दाद दिए बिना मन नहीं रहता |

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