Saturday 29 September 2012

आदरणीय भाई ,
आपका ई-पत्र |दरअसल चीजों का तेजी से बदलने का मेरा यह सन्दर्भ नहीं है कि वे मानवीय अर्थों ,अभिप्रायों और व्यवहार की दिशा में बदल रही हैं |यदि ऐसा होता तो हमारे लिए किसी तरह की संवाद की आवश्यकता ही क्या थी ? फिर तो इसके पक्ष में हवा बनाने की ही जरूरत थी |मेरी इस बारे में सीधी सी समझ यह है कि वैश्वीकरण की नयी साम्राज्यवादी और आवारा पूंजी की गतिशीलता की तुलना में पहले की अपेक्षा श्रम की ताकतें डिफेंसिव स्थिति में आई हैं |तभी तो वर्तमान सरकार ने पिछले ४ वर्षों में तथाकथित उदारवादी व्यवस्था के पक्ष में बेधड़क जन-विरोधी निर्णय कर लिए हैं |यह एक तरह का बुरा बदलाव है कि बुरी ताकतों में मानवीय ताकतों का थोड़ा सा भी भय नहीं रहा है |मध्य -वर्ग को पहले जितना वेतन नहीं मिलता था ,उससे ज्यादा पेंशन मिल रही है |एक जमाने में ३० रुपये महगाई भत्ते के लिए कर्मचारी ६०-६०दिनो तक जेलों में बंद रहे |अब बिना मांगे हर जनवरी और जुलाई में दो बार एक निश्चित प्रतिशत में महगाई भत्ता मिल जाता है |इससे मध्य-वर्ग का निम्न और निम्न-मध्य वर्ग से संवेदनात्मक रिश्ता बहुत कमजोर हुआ है |मजदूर और किसानों के सामने आत्महत्या करना अपनी जिन्दगी से निजात पा लेने का एक उपाय इन्ही दिनों क्योकर बना ?|अन्यथा हमारे देश का किसान कितना ही अभावग्रस्त और भूखा क्यों न रह लिया हो ,उसने कभी आत्म हनन का रास्ता अख्त्यार नहीं किया |उसके बेटे सत्तावन की लड़ाई में वीरतापूर्वक अंग्रेजों से लडे ,फांसी के फंदों को गले लगाया ,लेकिन आम-हनन नहीं किया |ऐसी बड़ी कमजोरी शायद अवसादग्रस्त स्थिति में ही आती है जब व्यक्ति को लगता है कि अब उसका इस दुनिया में कोइ नहीं है |जब समाज के निचले वर्गीय संबंधो के बीच खाई गहरी होने लगती है |व्यक्ति केवल पूंजी को अपने जीवन का प्रयोजन बना लेता है |मैं तो अपने ही घर में देख रहा हूँ कि इन नए बच्चो को एक ही धुन है |इनका जीवन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सेवा करने के लिए ही जैसे बना है |मेरा मतलब इस बदलाव की ओर था ,जो मानवता के भविष्य की दृष्टि से चिंता में इसलिए आना चाहिए कि इस परिस्थिति से कैसे निबटा जाय क्योकि काव्य-रचना, जीवन-रचना से जुडा हुआ प्रश्न ही तो है |बहरहाल ,आपकी बातो से मेरे मन में ये विचार आये |आप सभी प्रसन्न होंगे |आदर सहित -----आपका ---जीवन सिंह

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