Monday, 3 September 2012

इस बियाबान में --------
इस बियाबान में
मैंने देखा----
जंगली कुत्ते घेर खड़े हैं
धूल धूसरित
भूखा प्यासा फटेहाल
सच्चे मानव राहगीर को
दीप्यमान ईमान चन्द्र को
ग्रहण लगे ज्यों
मैंने देखे ------
खींच-खींच कर अंतड़ियों को
आत्मा की '
सेंक रहे --चूल्हे भट्टी में |
इस बियाबान में
काले नाग ,नागिने काली
फूत्कार से डरा डरा कर
डरे हुए स्वार्थी कीटों की
बड़ी जमातें जुडती जाती
सोपानों सी
नागों का विषदंत पुराना
खुश होकर अमृत दिवस मनाती
खुश करती नागों को
नाग सभ्यता बढ़ती जाती
वृक्ष विषैले उगते जाते
घुसते सांप पराये बिल में
चूहों की कमबख्ती आती
यही दिखाई देता
लिखा हुआ महलों दुर्गों में
इस निजाम में
रिश्ता लाठी भेंस का बनता
बड़ी बड़ी मछली छोटी को खाती
जंगल का सिद्धांत पुराना
अब भी चलता |


































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