Wednesday 5 September 2012

अनीता जी वे उच्च शिक्षित तो हैं ,लेकिन उनकी शिक्षा ने उनको अभी उच्च 'मानव ' नहीं बनाया है .वे अफसर हो सकते हैं |एक बात और है कि इनके पास भी अनेक रास्तों से अतिरिक्त धन----बिना खून पसीना बहाए , |आता रहता है |जहाँ भी जिसके पास अतिरिक्त धन आयेगा उसका यही चरित्र बन जायेगा |हाँ कुछ जीवित और जागृत आत्मा वाले मनुष्य इससे आत्मसंघर्ष करते हुए इससे निजात पाने की कोशिश करते हैं |निम्न मध्यवर्ग अक्सर विचार-प्रक्रिया में इन बातों को समझ लेताहै तो वह अपने स्वभाव को मेहनतकश वर्ग के पक्ष में बदलने की कोशिश करता है वह अपनी आत्मा के घायल पक्षी का उपचार कर लेता है | |पूंजी की व्यवस्था में हरेक व्यक्ति अपने वर्ग-स्वभाव के अनुसार व्यवहार करता है |ऊंची शिक्षा तो ऊंचे पद पाने के लिए लेता है ताकि जिन्दगी भर अतिरिक्त धन के लिए इंतजाम हो जाए |आज मध्य वर्ग के पास भी अतिरिक्त धन के कई स्रोत बन गए हैं , जिससे उनकी आत्मा का प्रकाश ख़त्म हो जाता है और वे सदैव एक आत्म रिक्त जिन्दगी जीकर 'खुश'रहते हैं |उनको फिर किसी की परवाह नहीं रहती |वे उसी वर्ग का साथ देते हैं जो अतिरिक्त धन जुटाने में उनकी मदद करता है |

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