Friday 21 September 2012

आदरणीय भाई , आपका आलेख मिला तो था लेकिन वह करप्ट हो जाने से पढने के लायक नहीं रहा |उसकी लिपि बदल गयी |निकाल कर देखा तो वह हाऊ-बिलाऊ बन गया |आपको अंगरेजी में सुविधा है तो उसी में लिखियेगा ,कोई बात नहीं |मुझे देवनागरी में दिक्कत नहीं है |अंगरेजी में मैं स्वयं को पूरी तरह व्यक्त नहीं कर पाता|इसलिए मैंने यह रास्ता अपनाया |आप अपनी सुविधा से लिखें |आपकी बातों को तो मैं समझ लेता ही हूँ |यहाँ पुस्तकालय में रोज दो घंटे जाता हूँ |शेक्सपीयर ,कीट्स ,जेन ऑस्टेन ,हार्डी, डिकेंस ,हेमिंग्वे और अंगरेजी भाषा पर नियमित पढ़ रहा हूँ और अपनी डायरी में भी लिख रहा हूँ |पौत्र अभिज्ञान को उसके शिशु घर में छोड़ने जाता हूँ |रेल का रास्ता है |कुछ दूरी पर सागर-तट है ,वहाँ चला जाता हूँ |प्रशांत महासागर का एक किनारा |आष्ट्रेलिया के ६०हज़ार वर्ष पुराने आदिवासियों पर भी यहाँ अंगरेजी में काफी साहित्य है ,जो हमारी परम्पराओं से बहुत मिलता-जुलता है |आश्त्रेलियन अंगरेजी में इन आदिवासी बोलियों के शब्दों को भी ले लिया है |यहाँ कई सब्बर्बों के नाम आदिवासी बोलियों पर हैं |यहाँ की वनस्पति , फूलों और बीहड़ों नदियों पर भी कई नाम हैं | बेहद प्रकृति-प्रेमी समाज है |सभी स्थान तरु -आच्छादित हैं |नदी-तटों को नेशनल पार्कों में बदल दिया है |आरम्भ में १८-वीं सदी के अंत में जो लोग यहाँ पहली बार आये थे ,उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो चाहते थे कि कुछ संग्यावाची शब्दों को यहाँ की मूल भाषाओं में ही रखें |भाषा के विकास की दृष्टि से यह अद्भुत स्थान है , जहाँ दुनिया के हर कोने का नागरिक रहता है |यह मात्र २०० साल पुराना देश है ,लेकिन इनको अंगरेजी और लैटिन की लम्बी विरासत की समृद्धि प्राप्त है |रेसिज्म की भावना है तो सही लेकिन बहुत कम है |दूसरों को बर्दास्त करने वाले बहुमत में हैं |वैसे तो ये अंग्रेज हैं और अपने ज्ञान-विज्ञान -साहित्य पर पूरा गर्व करते हैं _ इनको यह भी अहसास है कि इनकी भाषा- संस्कृति का इस समय पूरी दुनिया में डंका बज रहा है |पुस्तकालयों में लोग खूब बैठते हैं |रेलों में भी पढ़ते हुए अपना समय बिताते हैं |बहरहाल ,लेखों की लिपि यदि बदल सके तो भेज दीजियेगा |भाभी जी से प्रणाम कहियेगा ,अन्य सभी को स्नेह |प्रसन्न होंगे |----------आपका ------जीवन सिंह

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