आदरणीय भाई ,आपका ई-पत्र|डाउनलोड की प्रक्रिया से निकालकर आलेखों को पढूंगा और उसके बाद आपको लिखूंगा |निस्संदेह ,प्रगतिशील और जनवादी धारा के लिए पुनर्जागरण की बड़ी आवश्यकता है |उत्तर-आधुनिकतावाद की नयी परिस्थितियों ने 'मध्य-वर्ग' की धन और यश की लिप्सा को बेकाबू सा कर दिया है |लोगों को मानवता का भविष्य इसके अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता |सभी कुछ का अंत कर देने की घोषणा एक जमाने के मार्क्सवादी रहे लोगों तक ने कर दी या फिर चुपचाप इनको सिर-माथे लगाकर यह मान लिया कि ज्यादा कुछ होने- जाने वाला नहीं है | कुछ लोगों ने वर्ग-विमर्श को त्याग कर ,दलित और स्त्री-विमर्श का सुरक्षित रास्ता निकाल लिया है जिसमें उच्च-मध्यवर्ग को भी जगह मिल जाती है | सत्ता से सम्बन्ध बने रहने के सारे सूत्र मध्य-वर्ग वैसे ही निकाल लेता है जैसे पानी नीचे बहने का |बहरहाल, संघर्ष के अलावा कोई रास्ता है ही नहीं |
राजनीतिक पक्ष में में भी एक तरह का अवसरवाद ही नज़र आता है | अपनी जगह तो तब बनती जब हिंदी -क्षेत्रों में वामपंथ को रास्ता मिलता |इस जगह को धुर दक्षिणपंथ घेरे हुए है |कांग्रेस भी येन-केन प्रकारेण अपनी सत्ता को बरकरार रखने के रास्ते को ही अपना रास्ता मान चुकी है |इसलिए बड़ी जरूरत तो जन-जागरण की है |देश के मेहनतकश वर्ग की सैद्धांतिक एकजुटता की ----जातिवाद मुक्त किसान एकजुटता की |सबसे बड़ी बात है वर्ग-चेतना की |मध्य-वर्ग द्वारा डी-क्लास करने की ,व्यापक-स्तरीय संवेदनशीलता की |जिससे एक सही राजनीतिक विकल्प तैयार हो |
मैं पढ़ते हुए देख रहा हूँ कि यूरोप और अमरीकी समाजों के नए साहित्य और नयी धारणाओं से हमारा काम नहीं चल सकता |वह तो फिर हमारी मान्यताओं का उपनिवेशीकरण हो जाएगा |हमको हमारा रास्ता स्वयं ही बनाना होगा |हमारे पास एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है |हमारी अपनी देशज जमीन है |हमारा अपना ,परिवेश प्रकृति और सम्बन्ध-भावना है |नकलें ज्ञान -विज्ञान और शास्त्र के स्तर पर की जा सकती हैं |क़ानून -राजनीति,शासन-प्रशासन पराई भाषाओं में चलाया जा सकता है लेकिन साहित्य -संस्कृति ऐसे क्षेत्र हैं जहां किसी तरह का घालमेल नहीं चल सकता |आप वैचारिक मदद ले सकते हैं ,अपनी खिड़की खुली रखकर बाहर की हवाओं और प्रकाश को आने दे सकते हैं क्योंकि मानवता की लड़ाई पूरी दुनिया में चली है |मानवता के सन्दर्भ में कुछ सीखने को मिल जाय ,इतना सा उद्देश्य रहता है बस इस साहित्य को पढ़ते हुए |प्रसन्न होंगे |----आपका जीवन सिंह
राजनीतिक पक्ष में में भी एक तरह का अवसरवाद ही नज़र आता है | अपनी जगह तो तब बनती जब हिंदी -क्षेत्रों में वामपंथ को रास्ता मिलता |इस जगह को धुर दक्षिणपंथ घेरे हुए है |कांग्रेस भी येन-केन प्रकारेण अपनी सत्ता को बरकरार रखने के रास्ते को ही अपना रास्ता मान चुकी है |इसलिए बड़ी जरूरत तो जन-जागरण की है |देश के मेहनतकश वर्ग की सैद्धांतिक एकजुटता की ----जातिवाद मुक्त किसान एकजुटता की |सबसे बड़ी बात है वर्ग-चेतना की |मध्य-वर्ग द्वारा डी-क्लास करने की ,व्यापक-स्तरीय संवेदनशीलता की |जिससे एक सही राजनीतिक विकल्प तैयार हो |
मैं पढ़ते हुए देख रहा हूँ कि यूरोप और अमरीकी समाजों के नए साहित्य और नयी धारणाओं से हमारा काम नहीं चल सकता |वह तो फिर हमारी मान्यताओं का उपनिवेशीकरण हो जाएगा |हमको हमारा रास्ता स्वयं ही बनाना होगा |हमारे पास एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है |हमारी अपनी देशज जमीन है |हमारा अपना ,परिवेश प्रकृति और सम्बन्ध-भावना है |नकलें ज्ञान -विज्ञान और शास्त्र के स्तर पर की जा सकती हैं |क़ानून -राजनीति,शासन-प्रशासन पराई भाषाओं में चलाया जा सकता है लेकिन साहित्य -संस्कृति ऐसे क्षेत्र हैं जहां किसी तरह का घालमेल नहीं चल सकता |आप वैचारिक मदद ले सकते हैं ,अपनी खिड़की खुली रखकर बाहर की हवाओं और प्रकाश को आने दे सकते हैं क्योंकि मानवता की लड़ाई पूरी दुनिया में चली है |मानवता के सन्दर्भ में कुछ सीखने को मिल जाय ,इतना सा उद्देश्य रहता है बस इस साहित्य को पढ़ते हुए |प्रसन्न होंगे |----आपका जीवन सिंह
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