Sunday 7 October 2012

आदरणीय भाई ,
आपके मेल में व्यक्त आपकी पीड़ा को जान सकता हूँ कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में एक रास्ता बनाया हो और वह रास्ता एक बिंदु पर जाकर बंद हो जाए तो उस समय जो अहसास होगा ,उसे भुक्तभोगी ही जान सकता है ,लेकिन मैं ये नहीं चाहता कि कोई काम शुरू करके बीच में छोड़ दिया जाय ,इससे अच्छा है कि उस रास्ते चला ही न जाय |अलंकार के बच्चे की वजह से अब कुछ समय तक लगातार व्यवधान आने की आशंका बनी हुई है अन्यथा इस समय हमको यहाँ आने की कोई जरूरत नहीं थी |वह अब भी बार-बार अवधि को आगे बढवाने की कह रहा है |यदि इस समय चले भी जायेंगे तो फिर कुछ समय बाद यहाँ आने की कह रहा है |हमने भी ऐसा कभी नहीं सोचा था |आप जानते हैं कि लोग तो ऐसे जमे-जमाये सम्पादन की तलाश में रहते हैं |लेकिन मैं अपनी परिस्थिति को खुद जानता हूँ |इसलिए मैंने सब कुछ आपको पहले ही लिख दिया |सम्पादन नियमितता चाहता है समय की पूरी पाबंदी |अनियतकालिक पत्रिका तो है नहीं कि जब चाहो तब निकाल लो |भाभी जी को प्रणाम |आदर सहित -------आपका -----जीवन सिंह

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