Monday 8 October 2012

आदरणीय भाई ,
बात दरअसल यही है कि अभी तक कोई विश्वसनीय टीम नहीं बन पाई है |यदि ऐसा हुआ होता तो आज यह संकट उपस्थित नहीं हुआ होता |आपने कोशिश भी लगातार की हैं कि टीम बने ,किन्तु व्यक्ति की स्वार्थपरता,महत्त्वाकांक्षा और बिना मेहनत किये जोड़-तोड़ से जल्दी सब कुछ पा लेने ,की प्रवृति ने व्यक्ति को व्यक्ति ही रहने दिया ,|वैसे तो जयपुर में क्या नहीं है किन्तु मन का न हो तो क्या है ?जलेस-प्रलेसों के कलेश ज्यादा है , राहत की बात कोई नहीं |हम प्रलेस छोड़कर जलेस में आये लेकिन क्या हुआ ?|सभी जगह व्यक्ति ही व्यक्ति मिले ,कहीं संघ-समुदाय नहीं मिला |सब अनुयायी चाहने वाले हैं ,कामरेड ,साथी या सच्चा दोस्त नहीं | बहरहाल, कामेश्वर जी ने मुझसे भी लम्बी बातें की थी |'कृति ओर ' को लेकर और आपकी साहित्य -निष्ठा के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है |वे अब पूरी तरह मुक्त भी हो गए होंगे ,इसलिए पूरा सहयोग कर सकते हैं |कृति-ओर जयपुर रहे ,यह सुविधाजनक रहेगा और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सुकर भी |बस कामेश्वर जी से सारा दायित्व संभाल लेने की मंशा को पक्का कर लिया जाय |वे उत्साही हैं ,इच्छा भी है और विश्वसनीय भी हैं ,साहित्य के मामले में साईवाल से ज्यादा समझते हैं ,| वे आपके पूरावक्ती सहयोगी हो सकते हैं जो आपको प्रूफ इत्यादि देखने और पूरे प्रबंधन से मुक्त रख सकें |इससे पहले रमाकांत जी अवसाद से उबरकर सक्रिय हो जाएँ तो कहना ही क्या है | सोचेंगे तो राह भी निकलेगी |आदर सहित -----आपका ----जीवन सिंह

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