आज बुद्ध पूर्णिमा है। महात्मा बुद्ध जैसी महान हस्ती का जन्म दिन ,जिनको हमारे यहां के पहले समाज शास्त्री होने का गौरव हासिल है।जो व्यक्ति को उसके मजहब , जाति ,लिंग और औहदे से न देख कर केवल इंसान के रूप में देखते हैं। हजारों साल पहले जीवनानुभवों से जितना उन्होंने सीखा उतना शायद ही किसी अन्य व्यक्तित्त्व ने सीखा हो। बुद्ध का महत्त्व आज भी इस रूप में है कि वे व्यक्ति को अपना पिछलगुआ नहीं बनाते। वे कहते हैं कि अपने दीपक आप बनो। विवेकानंद उनके दर्शन से पूरी तरह सहमत नहीं थे फिर भी उन्होंने माना कि बुद्ध ही एक व्यक्ति थे ,जो पूर्णतया तथा यथार्थ में निष्काम कहे जा सकते हैं। वे मानते थे कि ---अपनी उन्नति अपने ही प्रयत्न से होगी। अन्य कोई इसमें तुम्हारा सहायक नहीं हो सकता। स्वयं अपनी मुक्ति प्राप्त करो। जबकि दूसरे महापुरुष अपने पीछे चलने की सलाह देते हैं। वे मानते थे कि चीजें परिवर्तित होती हैं।
जो लोग दूसरों की तरफ देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं ,वे अपने हक़ की लड़ाई भी याचना भाव से लड़ते देखे जाते हैं। मेरी माँ अक्सर एक कहावत कहती थी ----आस बिरानी जो करै , जीवत ही मर जाय। दूसरे की आशा मत करो , . दूसरे की आशा करोगे तो उसका गुलाम बनकर रहने को अभिशप्त होना पडेगा।
जो लोग दूसरों की तरफ देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं ,वे अपने हक़ की लड़ाई भी याचना भाव से लड़ते देखे जाते हैं। मेरी माँ अक्सर एक कहावत कहती थी ----आस बिरानी जो करै , जीवत ही मर जाय। दूसरे की आशा मत करो , . दूसरे की आशा करोगे तो उसका गुलाम बनकर रहने को अभिशप्त होना पडेगा।
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