Monday, 5 May 2014

अन्धेरा पहले से बढ़ा है
क्यों कि बाज़ार का भाव
तेजी  से चढ़ा है
जब जब बाज़ार भाव बढ़ता है 
तब तब अन्धेरा
आसमान  चढ़ता है 

बाजार की रोशनी
बहुत बड़ा धोखा है
यह रोशनी की कांख में
अन्धकार छिपा कर लाता  है
और उसे विकास बतलाता है 
इसने न जाने दूसरों का
 कितना रक्त पिया  है
कितना सोखा है
इंसानियत के रथ को
इसने ही रोका है

बाज़ार अब
 तख्ते ताऊस पर बैठना चाहता है
इसे पता नहीं कि
दिल्ली अभी दूर है
यह नहीं जानता 
 दीवाने ख़ास गुलाम हो सकता है 
   दीवाने आम नहीं। 




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