Wednesday, 7 May 2014

व्यापार की
एक ही नैतिकता होती है
सिर्फ व्यापार
व्यापार और केवल व्यापार
इसकी पहली शर्त है ---
धोखा , झूठ ,फरेब के
विभ्रमकारी
पहाड़ खड़े करना

व्यापारी जब
राजसत्ता से गलबहियां
लेने लगता है
और उससे  अपना नाता
दाम्पत्य में बदल लेता है
तो समझो बेड़ा  गर्क है
यही फर्क है
जब व्यापारी
जंगल का शिकारी बन जाता है
वह सबसे पहले
 आदमियत का चोला उतारता है
और खरगोशों का शिकार कर
स्वयं को धनुर्धर घोषित करा लेता है
वह गुण ,ज्ञान और जोग की खेप लादकर
ब्रज में प्रवेश करता है
अब यह गोपियों पर है कि
वे उसे कितना समझती हैं।

1 comment:

  1. ब्यापारी वर्ग के प्रति गलत धारना प्रदर्शित की गयी है जो उचित नहीं है.

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