Tuesday 6 May 2014

रचनाकार एक सीमित व्यक्तित्त्व लेकर जन्मता है , किन्तु वह अपने जीवनानुभवों का निरंतर विस्तार करता है ,जो उसका आत्म विस्तार कहलाता है।  उसकी रचना ही यह बता देती है कि रचनाकार के व्यक्ति का घेरा कितना बड़ा है।  जो रचनाकार आत्मविस्तार नहीं कर पाते ,वे रचना को भी बड़ी नहीं बना पाते। एक जगह कदम ताल करते रहने से मंजिल पूरी नहीं हुआ करती , स्वास्थ्य जरूर अच्छा रह सकता है।

No comments:

Post a Comment