साम्राज्यवाद का मतलब शक्ति-सत्ता की निरंकुशता ही तो होता है ,वह बड़े स्तर पर देश या देशों की होती है और छोटे स्तर पर व्यक्ति या व्यक्तियों की | जिन वरिष्ठों का अक्सर उल्लेख किया जाता है वे भी किसी न किसी सत्ता का केंद्र बनकर ही ऐसा करते हैं | इस तरह के व्यक्तिवादी साम्राज्यवाद का विरोध यदि नहीं हो सकता तो साम्राज्यवाद का क्या खाकर होगा ?जिनमें अपने बीच के ऐसे 'साम्राज्यवाद- शत्रुओं ' का विरोध करने का साहस नहीं होता ,उनका विरोध 'थियरी 'तक सीमित रहता है ,'प्रैक्टिस 'शायद ही बन पाता हो |
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