मायामृग जी ,इस बदलने में खुद का बदलना भी शामिल है ,मध्यवर्गीयता को छोड़ते हुए उस मेहनतकश वर्ग के साथ सच्चे मन से कदम मिलाकर चलना भी शामिल है ,जिसके तन से पसीने की बदबू आती है ,जिसके पास न कोई बड़ा पद देने को है,न पुरस्कार ,न विदेश यात्रा ,न वैभव न कोष , इसके विपरीत वह आपसे ही चाहता है कि उन प्रलोभनों को भूल जाएँ जो साम्राज्यवाद के थैले में आठ पहर चौंसठ घड़ी पड़े रहते हैं |ऐसा जब-जब हुआ है ,पूंजी के साम्राज्य से लड़ा जा सका है |
No comments:
Post a Comment