Thursday 12 July 2012

दादा जी ,दादा जी
कहाँ चले तुम दादा जी
सिरपर टोपी ,हाथ में डंडा
पहन के कपडे सादा जी |
दादा जी का डंडा है
ज्यों गंगा का पंडा है
यही एक हथकंडा है
और नहीं कुछ ज्यादा जी |
दादी जी की लाठी है ,
आगे की सहपाठी है ,
बूढों की परिपाटी है ,
ये बोझ सभी ने लादा जी |
अब की जब हम आएँगे ,
खूब मिठाई लायेंगे ,
अभि को खिलायेगे ,
रहा हमारा वादा जी |

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