उत्कृष्टता के लिए हमेशा पापड़ बेलने पड़े हैं |तभी तपस्या और साधना जैसे
शब्द मानवीय कोश में आये हैं |तप अधार सब सृष्टि भवानी |लेकिन राजनीति एक
ऐसा गोरखधंधा बना दिया गया है जिसमें बहुत आसानी से चापलूसी के बल पर बहुत
कुछ हासिल हो जाता है |या फिर प्रोपर्टी डीलिंग में ---यानी दलाली में
,पौबारह हैं |आजकल कदाचित इसीलिये हर धंधे में दलालों की बाढ़ आयी हुई है
|साहित्य भी इससे अछूता कहाँ रह गया है ?
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