Monday 3 August 2015

उच्च चिंतन और उच्च आदर्श अपनी सहज भाषा में भी खूब किया जा सकता है और वह परम्परा के साथ नया और आधुनिक भी तो होना चाहिए |जो समाज अपने नए आदर्श नहीं गढ़ सकता और नए सपने नहीं देख सकता वह अपनी नयी और सहज भाषा भी कैसे ईजाद कर पायगा और उसमें उच्च चिंतन भी नहीं होगा |वह हमेशा पुराने के गीत ही गाता रहेगा |

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