उच्च
चिंतन और उच्च आदर्श अपनी सहज भाषा में भी खूब किया जा सकता है और वह
परम्परा के साथ नया और आधुनिक भी तो होना चाहिए |जो समाज अपने नए आदर्श
नहीं गढ़ सकता और नए सपने नहीं देख सकता वह अपनी नयी और सहज भाषा भी कैसे
ईजाद कर पायगा और उसमें उच्च चिंतन भी नहीं होगा |वह हमेशा पुराने के गीत
ही गाता रहेगा |
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