Sunday 2 August 2015

जनता के लेखक प्रेमचन्द ------------
कल अलवर जिले की तेज़ी से विकसित होती औद्योगिक नगरी भिवाडी में प्रेमचन्द के साहित्य और उसकी प्रासंगिकता पर यहाँ के कुछ मित्रों की संस्था ---अभिव्यक्ति-----ने एक संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें अलवर से जुगमंदिर तायल , रेवती रमण शर्मा , त्रिलोक शर्मा और उनके साथ मैं भी शामिल हुआ |अच्छा यह जानकर लगा कि यहाँ लगभग पूरा भारत अपनी एकता के ताने बाने में गुंथा उपस्थित होता है |दोस्तों का एक निराला संसार ,|प्रेमचंद के साहित्य ने उस सूत्र को और मजबूत किया ,इसलिए उन्होंने इसको अपनी परम्परा बना लिया है |और कुछ मनाएं या न मनाएं प्रेमचन्द दिवस जरूर मनाते हैं |इस बार इस आयोजन में प्रेमचंद के इस संस्मरण को तायल जी ने यहाँ खासतौर से सुनाया कि अलवर के तत्कालीन महाराजा जय सिंह को उनका कर्मभूमि उपन्यास बहुत पसंद आया |उन्होंने उनको तत्काल अलवर आने का निमंत्रण दिया कि ४०० रुपये माहवार वेतन , कोठी---बंगला, नौकर चाकर सब रहेंगे लेकिन प्रेमचंद जी ने यहाँ आने से साफ़ इनकार कर दिया |शिवरानी जी ने लिखा है कि जब मैंने अपने पति प्रेमचन्द से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो प्रेम चंद जी ने उत्तर दिया कि वे जनता के लेखक रहना चाहते हैं किसी महाराजा के नहीं |

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