इन
विषयों पर मौलिक लेखन होना चाहिए |अनुवाद में तो ऐसा ही होता है जब तक कोई
अनुवादक भाषा और विषय दोनों में पारंगत नहीं हो |विज्ञान और समाजशास्त्रीय
विषयों में अच्छे अनुवाद , जो हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुकूल हुए हों ,
बहुत कम पढने में आते हैं |इतना समय हो गया क्या अब भी इन विषयों को समझकर
मौलिक ढंग से नहीं लिखा जा सकता |अनुवाद में हमेशा उस भाषा का दबाव और तनाव
रहता है जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है |
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