Friday, 21 June 2013

अंगरेजी में या कहें पूरी अंग्रेज  जाति ने साहित्य-संस्कृति , ज्ञान और विज्ञान में अपनी भाषा को आधुनिकता की बुलंदियों पर 
पंहुचाने में क्या कुछ नहीं किया । पूरी जाति  अपनी भाषा के लिए समर्पित रही । उनकी विडंबना यह थी कि वे अपनी भाषा से गहरा अनुराग रखते थे और उसको ज्ञान - विज्ञान में अद्यतन बना ने में सक्रिय  भूमिका अदा करते थे । इतना ही नहीं अपने भाषा-साहित्य ज्ञान का दूसरों को अनुभव कराकर अपनी गुलाम जातियों में गहरा हीनता का भाव भर देते थे । हमारे यहाँ आधुनिकता का जनक माने जाने वाले राजा राम मोहन रे तक उनके इस प्रभाव में थे किन्तु गांधी - भगत सिंह नहीं थे । वे जानते थे कि किसी भी कौम को भाषा और संस्कृति - वर्चस्व से लम्बे समय तक मानसिक गुलाम बनाए रखा जा सकता है । इससे उच्च वर्ग का फायदा है । नुकसान  होता है निम्न-मध्य और गरीब वर्ग को । वह अपनी भाषा के बिना आज़ाद नहीं हो सकता । किसी भी व्यक्ति की आत्मा उसकी निजभाषा में निवास करती है । अंगरेजी दिमाग की भाषा हो सकती है , दिल की कभी नहीं । निज भाषा की पगडंडी पर चलकर एवेरेस्ट फ़तेह किया जा सकता है । भारतेंदु जी ने गलत नहीं कहा कि --"बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत  न हिय कौ  शूल " ।

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