Tuesday, 11 June 2013

आओ लौट चलें
अपने गाँव
वे भी लौट गए
जो निकले थे बदलने के लिए
ख़म ठोक  कर
ऐसा लगा
यह उनका हवाखोरी करने का समय था
मीडिया के चुहलाबाजों  को गच्चा देने का ।


आओ लौट चलें
अपने गाँव
वे ही करेंगे ढिबरी टाइट
क्योंकि लोकतंत्र की लालटेन
आज भी उनके ही पास है

आओ लौट चलें
अपने गाँव ।

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