पूंजी से जुड़े अखबारों की गहरी प्रतिबद्धता पूंजी के पक्ष और श्रम की
शक्तियों के विरोध में वातावरण बनाये रखने की होती हैं यद्यपि वह तटस्थ
होने का ढोंग करता है । असलियत उसकी खुल भी जाती है तो वह बड़ी बेशर्मी से
दिशा बदल लेता है । उसका चरित्र ही होता है अपनी किसी बात पर दृढ़ता से न
टिकना । भला हुआ नेट तकनीक के विकसित होते चले जाने का , जो सारे भरम बड़ी
आसानी से खोल देती है । अब अखबार को वह आज़ादी नहीं जो वह मीडिया के नाम पर
भोगता रहा है । सोशल मीडिया ने आज़ादी का दायरा तेजी से विकसित किया है और
झूठ -अफवाह फैलाने वालों का पर्दाफ़ाश भी किया है । यद्यपि वे ताकतें यहाँ
भी अपनी जबान दराजी करने के लिए तत्पर रहती हैं ।
No comments:
Post a Comment