Wednesday 26 June 2013

पूंजी से जुड़े अखबारों की  गहरी प्रतिबद्धता पूंजी के पक्ष और श्रम की शक्तियों के विरोध में वातावरण बनाये रखने की होती हैं यद्यपि वह तटस्थ होने का ढोंग करता है । असलियत उसकी खुल भी जाती है तो वह बड़ी बेशर्मी से दिशा बदल लेता है । उसका चरित्र ही होता है अपनी किसी बात पर दृढ़ता से न टिकना । भला हुआ नेट तकनीक के विकसित होते चले जाने का , जो सारे भरम बड़ी आसानी से खोल देती है । अब अखबार को वह आज़ादी नहीं जो वह मीडिया के नाम पर भोगता रहा है । सोशल  मीडिया ने आज़ादी का दायरा तेजी से विकसित किया है और झूठ -अफवाह फैलाने वालों का पर्दाफ़ाश भी किया है । यद्यपि वे ताकतें यहाँ भी अपनी जबान दराजी करने के लिए तत्पर रहती हैं ।

No comments:

Post a Comment