Sunday 19 August 2012

कवि लिखता है कविता
छपता है पत्रिकाओं में
सुनाता है कविता गोष्ठी में
पढता है ,पढवाता है
प्रकाशित करवाता है संग्रह
चर्चा होती है
करवाई जाती हैं चर्चाएँ
पुरस्कार पाता है
पाने के जुगाड़ करता है
प्रशंसाओं के पुल बांधे जाते हैं
पर उसमें जो लिखा है
उस बात पर एक कदम चलने में
मरने लगती है नानी
बात बोलती है जरूर
पर पैरों पर नहीं चलती
जिस रोज पैरों पर
चलने लगेगी बात
उस रोज सब कुछ बदल जायेगा |
मुझे इंतजार उस दिन का है
जब बात बोलेगी नहीं
सिर्फ चलेगी ,चलेगी |














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