१५ जुलाई २०१२ ,रविवार ,
आज यहाँ आये हुए हमको एक माह पूरा हो गया |सुबह ओल्ड्स पार्क में घूमने के लिए गया |पिछली बार जब २०११ में यहाँ आये थे ,तब रोजाना इसी पार्क में घूमने जाया करता था |अब इसमें पहले से हरियाली और ज्यादा बढ़ गयी है |सुविधाएं भी बढ़ गयी हैं |इसमें घूमते हुए परिवेश की शान्ति और निर्मलता की वजह से सुखानुभूति बढ़ जाती है |परिवेश और मन के बीच गहरा रिश्ता होता है |जैसा परिवेश वैसा मन ,और जैसा मन वैसा परिवेश |
साहित्य की रचना में लेखक के मनोमय जीवन की भूमिका होती है अर्थात उसके परिवेश से जैसा उसका मन बना है वैसे ही साहित्य का सृजन वह करता है | जो लेखक परिवेश को जितना आत्मसात करके अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का अंग बना लेता है उतना ही भाव -समृद्ध उसका लेखन होता जाता है |यदि लेखन में गहराई नहीं आ पा रही है ,तो इसका सीधा-सा मतलब है कि उसका अपने परिवेश से गहरा रिश्ता नहीं बन पाया है लेखक का परिवेश बहुस्तरीय होता है ,आज के जमाने में विश्व-परिवेश से लगाकर ,राष्ट्रीय,स्थानीय ,पारिवारिक और लेखक के निजी मनोमय परिवेश तक |इनमें जिस लेखक की जितनी गहरी , व्यापक और बहुस्तरीय पैठ होगी ,लेखन की गहराई और व्यापकता भी उसी पर निर्भर करेगी | परिवेश और व्यक्ति का रिश्ता अपने आप नहीं बनता | इसके लिए लेखक को ज्ञानात्मक और संवेदनात्मक परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता है |
आज यहाँ आये हुए हमको एक माह पूरा हो गया |सुबह ओल्ड्स पार्क में घूमने के लिए गया |पिछली बार जब २०११ में यहाँ आये थे ,तब रोजाना इसी पार्क में घूमने जाया करता था |अब इसमें पहले से हरियाली और ज्यादा बढ़ गयी है |सुविधाएं भी बढ़ गयी हैं |इसमें घूमते हुए परिवेश की शान्ति और निर्मलता की वजह से सुखानुभूति बढ़ जाती है |परिवेश और मन के बीच गहरा रिश्ता होता है |जैसा परिवेश वैसा मन ,और जैसा मन वैसा परिवेश |
साहित्य की रचना में लेखक के मनोमय जीवन की भूमिका होती है अर्थात उसके परिवेश से जैसा उसका मन बना है वैसे ही साहित्य का सृजन वह करता है | जो लेखक परिवेश को जितना आत्मसात करके अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का अंग बना लेता है उतना ही भाव -समृद्ध उसका लेखन होता जाता है |यदि लेखन में गहराई नहीं आ पा रही है ,तो इसका सीधा-सा मतलब है कि उसका अपने परिवेश से गहरा रिश्ता नहीं बन पाया है लेखक का परिवेश बहुस्तरीय होता है ,आज के जमाने में विश्व-परिवेश से लगाकर ,राष्ट्रीय,स्थानीय ,पारिवारिक और लेखक के निजी मनोमय परिवेश तक |इनमें जिस लेखक की जितनी गहरी , व्यापक और बहुस्तरीय पैठ होगी ,लेखन की गहराई और व्यापकता भी उसी पर निर्भर करेगी | परिवेश और व्यक्ति का रिश्ता अपने आप नहीं बनता | इसके लिए लेखक को ज्ञानात्मक और संवेदनात्मक परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता है |
उसका जीवन और परिवेश से जितना ज्ञानात्मक एवं संवेदनात्मक लगाव होगा ,उतनी ही उसकी कला में जीवन की समृद्धि तथा आत्मगत सचाई का प्रकाश आता चला जायेगा |
मोरडेल सबर्ब में स्थित एक भारतीय स्टोर से घर-गृहस्थी का सामान खरीदते हैं ,वहां हिंदुस्तान के बारे में जरूरी जानकारी देने के उद्देश्य से ----असल बात तो यह है कि विज्ञापनों के माध्यम से व्यवसाय करने के उद्देश्य से ------द इंडियन और इंडियन लिंक ---दो पत्रिकाएँ मुफ्त में मिल जाती हैं |इसमें यहाँ रहने वाले भारत और आष्ट्रेलिया ----दोनों के बीच में रिश्ते को व्यक्त करने वाली सूचनाओं का संकलन किया जाता है |इनमें भी --द इंडियन ---पत्रिका में विविधता ज्यादा है |कागजी मुफ्तखोरी यहाँ बहुत ज्यादा है और उसका कारण है ,जिन्दगी में बढ़ता पूंजी का दखल |पूंजी व्यवसाय से आती है और व्यवसाय विज्ञापन से बढ़ता है |विज्ञापनों से ही लोगों को उपभोक्ता में बदला जाता है |इस बात की किसी को परवाह नहीं होती कि इसमें कागज़ की कितनी बर्बादी होती है और कागज की बर्बादी से पर्यावरण कितना प्रभावित होता है |यहाँ आदमी से ज्यादा वह व्यापारी नज़र आता है |जिसका एक ही काम है कि व्यक्ति ही नहीं बल्कि हर स्थिति ,कला ,संस्कृति सब कुछ व्यापार में बदल जाय |आदमी के रिश्तों को भी पूरी तरह व्यापार में बदल दिया जाय ,ऐसा हो भी रहा है |आदमी और आदमियत के बीच में पूंजी आकर खडी हो गयी है |पूंजी ही एकमात्र पैमाना रह गया है आदमी की नाप-जोख का |फिर आदमियत को कौन पूछने वाला है |
'द इंडियन ' पत्रिका में सन २०११ में आष्ट्रेलिया में हुई जनगणना के आंकड़ों से यहाँ की आबादी , भाषा ,संस्कृति का एक परिदृश्य सामने आया |इस देश में हर पांचवें साल में जनगणना होती है और उससे देश के भावी विकास के लिए निर्णय लेने में मदद मिलाती है |इससे पहले २००६ में जनगणना हुई थी |इन की तुलना करने पर मालूम हुआ कि यहाँ भारतीयों के आप्रवासन की गति में १०० प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है |यहाँ के न्यू साउथ वेल्स के मल्टी कल्चरल बिज्निश पेनल के अध्यक्ष निहाल गुप्ता के हवाले से बतलाया गया है कि विगत ५ वर्षों में यहाँ भारतीय समुदाय की आबादी एक लाख सैंतालीस हज़ार से बढ़ कर दो लाख पिचानवे हज़ार हो गयी है |इनमें एक लाख ग्यारह हज़ार तीन सौ इक्यावन हिन्दी भाषी हैं |इन आंकड़ों से मालूम हुआ कि पिछले पांच वर्षों में आष्ट्रेलिया आने वालों में सबसे अधिक तादाद भारतीयों की तेरह दसमलव सात प्रतिशत रही |अब यहाँ राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषियों का नौवां स्थान है |पंजाबी तेरहवें स्थान पर हैं |भारतीयों में हिंदी भाषी चार दसमलव पांच ,पंजाबी चार दसमलव चार ,गुजराती और बंगाली अलग-अलग एक दसमलव दो ,तमिल एक दसमलव एक पांच प्रतिशत हैं |इनके अलावा उर्दू भाषी ,तेलुगु , मलयाली ,मराठी और कन्नड़ एक प्रतिशत से कम हैं |२०११ की जनगणना से मालूम हुआ कि यहाँ के हैरिस पार्क सबर्ब की आबादी में बहुत बड़ा बदलाव यह आया है कि इसे यहाँ का लिटिल इंडिया कहा जाने लगा है |इसमें गुजराती भाषियों की संख्या बीस दसमलव चार प्रतिशत है जो यहाँ के अंगरेजी भाषी १८. ७ प्रतिशत से ज्यादा है |इनके अलावा हिंदी भाषी ८.३, पंजाबी ६.५ ,तेलुगु २.८ और १.१ तमिल अलग से हैं |कुल मिलाकर ४३ प्रतिशत भारतीय इस सबर्ब में रहते हैं |" केम छो " यहाँ "नमस्ते " से ज्यादा बोला जाता है |होर्न्स्बी सबर्ब में ऑस्ट्रेलियनों और चीनियों के बाद तीसरा नंबर भारतीयों का है |लिवरपूल सबर्ब में ४.५ प्रतिशत हिंदी भाषी हैं |यहाँ के सबसे प्राचीन बसावट वाले पैरामाटा सबर्ब में २०
प्रतिशत से अधिक भारतीय निवास करते हैं |
सिडनी की बसावट आष्ट्रेलिया में सबसे पुरानी है |पुस्तक में बतलाया गया है कि यहाँ के पहले सर्वेयर जनरल थोमस मिशेल ने इस अंचल की आदिवासी बोलियों के स्थान एवं नदी वाची नामों का संकलन कराया था ,जिससे इसकी पुरानी पहचान को बनाए रखा जा सके |इसी वजह से आज अनेक उपनगरों ,स्टेशनों ,गलियों आदि के नाम आदिवासी बोलियों के प्रचलन में हैं |इसका विरोध संकीर्ण नजरिये वाले लोगों द्वारा किये जाने पर और आदिवासियों की बोलियों के शब्दों के उच्चारण में कठिनाई आने के कारण लचीला रुख अपनाया गया |आज कई जगहों के नाम यद्यपि इनकी अपनी भाषा अंगरेजी के हैं किन्तु उनके साथ साथ आदिवासियों की बोलियों के नाम भी खूब प्रचलन में आ गए हैं |
मोरडेल सबर्ब में स्थित एक भारतीय स्टोर से घर-गृहस्थी का सामान खरीदते हैं ,वहां हिंदुस्तान के बारे में जरूरी जानकारी देने के उद्देश्य से ----असल बात तो यह है कि विज्ञापनों के माध्यम से व्यवसाय करने के उद्देश्य से ------द इंडियन और इंडियन लिंक ---दो पत्रिकाएँ मुफ्त में मिल जाती हैं |इसमें यहाँ रहने वाले भारत और आष्ट्रेलिया ----दोनों के बीच में रिश्ते को व्यक्त करने वाली सूचनाओं का संकलन किया जाता है |इनमें भी --द इंडियन ---पत्रिका में विविधता ज्यादा है |कागजी मुफ्तखोरी यहाँ बहुत ज्यादा है और उसका कारण है ,जिन्दगी में बढ़ता पूंजी का दखल |पूंजी व्यवसाय से आती है और व्यवसाय विज्ञापन से बढ़ता है |विज्ञापनों से ही लोगों को उपभोक्ता में बदला जाता है |इस बात की किसी को परवाह नहीं होती कि इसमें कागज़ की कितनी बर्बादी होती है और कागज की बर्बादी से पर्यावरण कितना प्रभावित होता है |यहाँ आदमी से ज्यादा वह व्यापारी नज़र आता है |जिसका एक ही काम है कि व्यक्ति ही नहीं बल्कि हर स्थिति ,कला ,संस्कृति सब कुछ व्यापार में बदल जाय |आदमी के रिश्तों को भी पूरी तरह व्यापार में बदल दिया जाय ,ऐसा हो भी रहा है |आदमी और आदमियत के बीच में पूंजी आकर खडी हो गयी है |पूंजी ही एकमात्र पैमाना रह गया है आदमी की नाप-जोख का |फिर आदमियत को कौन पूछने वाला है |
'द इंडियन ' पत्रिका में सन २०११ में आष्ट्रेलिया में हुई जनगणना के आंकड़ों से यहाँ की आबादी , भाषा ,संस्कृति का एक परिदृश्य सामने आया |इस देश में हर पांचवें साल में जनगणना होती है और उससे देश के भावी विकास के लिए निर्णय लेने में मदद मिलाती है |इससे पहले २००६ में जनगणना हुई थी |इन की तुलना करने पर मालूम हुआ कि यहाँ भारतीयों के आप्रवासन की गति में १०० प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है |यहाँ के न्यू साउथ वेल्स के मल्टी कल्चरल बिज्निश पेनल के अध्यक्ष निहाल गुप्ता के हवाले से बतलाया गया है कि विगत ५ वर्षों में यहाँ भारतीय समुदाय की आबादी एक लाख सैंतालीस हज़ार से बढ़ कर दो लाख पिचानवे हज़ार हो गयी है |इनमें एक लाख ग्यारह हज़ार तीन सौ इक्यावन हिन्दी भाषी हैं |इन आंकड़ों से मालूम हुआ कि पिछले पांच वर्षों में आष्ट्रेलिया आने वालों में सबसे अधिक तादाद भारतीयों की तेरह दसमलव सात प्रतिशत रही |अब यहाँ राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषियों का नौवां स्थान है |पंजाबी तेरहवें स्थान पर हैं |भारतीयों में हिंदी भाषी चार दसमलव पांच ,पंजाबी चार दसमलव चार ,गुजराती और बंगाली अलग-अलग एक दसमलव दो ,तमिल एक दसमलव एक पांच प्रतिशत हैं |इनके अलावा उर्दू भाषी ,तेलुगु , मलयाली ,मराठी और कन्नड़ एक प्रतिशत से कम हैं |२०११ की जनगणना से मालूम हुआ कि यहाँ के हैरिस पार्क सबर्ब की आबादी में बहुत बड़ा बदलाव यह आया है कि इसे यहाँ का लिटिल इंडिया कहा जाने लगा है |इसमें गुजराती भाषियों की संख्या बीस दसमलव चार प्रतिशत है जो यहाँ के अंगरेजी भाषी १८. ७ प्रतिशत से ज्यादा है |इनके अलावा हिंदी भाषी ८.३, पंजाबी ६.५ ,तेलुगु २.८ और १.१ तमिल अलग से हैं |कुल मिलाकर ४३ प्रतिशत भारतीय इस सबर्ब में रहते हैं |" केम छो " यहाँ "नमस्ते " से ज्यादा बोला जाता है |होर्न्स्बी सबर्ब में ऑस्ट्रेलियनों और चीनियों के बाद तीसरा नंबर भारतीयों का है |लिवरपूल सबर्ब में ४.५ प्रतिशत हिंदी भाषी हैं |यहाँ के सबसे प्राचीन बसावट वाले पैरामाटा सबर्ब में २०
प्रतिशत से अधिक भारतीय निवास करते हैं |
सिडनी की बसावट आष्ट्रेलिया में सबसे पुरानी है |पुस्तक में बतलाया गया है कि यहाँ के पहले सर्वेयर जनरल थोमस मिशेल ने इस अंचल की आदिवासी बोलियों के स्थान एवं नदी वाची नामों का संकलन कराया था ,जिससे इसकी पुरानी पहचान को बनाए रखा जा सके |इसी वजह से आज अनेक उपनगरों ,स्टेशनों ,गलियों आदि के नाम आदिवासी बोलियों के प्रचलन में हैं |इसका विरोध संकीर्ण नजरिये वाले लोगों द्वारा किये जाने पर और आदिवासियों की बोलियों के शब्दों के उच्चारण में कठिनाई आने के कारण लचीला रुख अपनाया गया |आज कई जगहों के नाम यद्यपि इनकी अपनी भाषा अंगरेजी के हैं किन्तु उनके साथ साथ आदिवासियों की बोलियों के नाम भी खूब प्रचलन में आ गए हैं |
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