Wednesday, 8 August 2012

केशव जी की कवितायेँ पढ़कर हमेशा खुशी इसलिए होती है कि उनमें हमेशा कुछ ऐसा होता है ,जो अन्यत्र नहीं मिलता |यहाँ तक कि विषय की समरूपता होने पर भी उनकी काव्य-वस्तु अपने तरीके से अपनी एक बेहद तर्क-संगत ,समकालीन, सार्थक और आधारभूत मनुष्यता का कोई पैना और तीखा सवाल उठाती है |असल बात यह है कि उनका कवि उन सवालों से तटस्थ न रहकर उनमें शामिल रहता है ,तभी वह कवि,कलाकार और रचना-कर्म में लगे लोगों से "अपने-अपने रिसालों से बाहर निकलने " की बात करता है |कहन-शैली और मुहावरे में तो उनका केशवत्व झलकता ही है |बड़ी संभावनाएं हैं उनमें | इसके लिए उनके साथ 'अनहद 'को भी बधाई

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