गढ़ का तिरछा परकोटा ---------
एक था आदमी बहुत बहुत
नहीं मिला मकान किराये पर
जयपुर महानगर में
वह नागरिक था
सबसे निचली सीढ़ी का
माँ ने जन्म दिया था जैसे
वह उसी मार्ग से आया था
जिससे आती है पूरी दुनिया
दोष उसका था यही
अपराध भी कि
क्यों नहीं कुछ कर पाया कि
कला सीख लेता गर्भ -परिवर्तन की
यह दुर्ग है मित्र
बहुत पुराना
रक्त-दुर्ग
इसकी गलियों का
चक्रव्यूह बनता रहा सदियों से
मन की चट्टान पर बना
अहम् के उत्तुंग शिखर पर
वृहदाकार विस्तीर्ण परकोटा
एक था आदमी बहुत बहुत
नहीं मिला मकान किराये पर
जयपुर महानगर में
वह नागरिक था
सबसे निचली सीढ़ी का
माँ ने जन्म दिया था जैसे
वह उसी मार्ग से आया था
जिससे आती है पूरी दुनिया
दोष उसका था यही
अपराध भी कि
क्यों नहीं कुछ कर पाया कि
कला सीख लेता गर्भ -परिवर्तन की
यह दुर्ग है मित्र
बहुत पुराना
रक्त-दुर्ग
इसकी गलियों का
चक्रव्यूह बनता रहा सदियों से
मन की चट्टान पर बना
अहम् के उत्तुंग शिखर पर
वृहदाकार विस्तीर्ण परकोटा
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