Friday, 17 August 2012

रात में मिली
आजादी की भोर में
एक रेखा पतली-पैनी
काली बिल्ली की चमकदार आँखों -सी
आती नज़र
तो नयी लहरों पर
नाव के आ जाने का भरोसा
और राष्ट्र की चिर-दलित आत्मा के
उन्नयन का सवाल
विकलांग बच्चे सा
पीठ पर लदा देता दिखाई
जिसकी गति अपनी नहीं
प्रसव पीड़ा से पूर्व
दिख गए थे लक्षण भविष्य के
प्रत्येक आँख का आंसू पौंछना
बना देता भावुक
अब तो यह सपना भी नहीं
आधी रात में उगे सूरज का |

सवाल अपनी जगह
दुर्लंघ्य घाटी-सा खडा
आंसू बहते नदी की तरह
कुछ भव्य-विराट रूपाकारों के प्रमाण
गणित के मानवीय प्रमेय i
नहीं कर सकते हल य-
छल से
नहीं पाला जा सकता
सत्य-शिशु को ,
रंगमंच की पूरी रोशनी का पता
भेड़ों -बकरियों की गणना
और मंडियों से देश-भक्ति का
देकर मन बहलाने वालों का जमावड़ा ,
जंजीरों में जकड़े
पालतू श्वान
नहीं पहचान सकते
उत्तर दिशा में ध्रुव तारे को |
सप्त-ऋषियों के उदित होने पर
किसान जाता रहा
हल-बैल लेकर खेतों पर
सवाल उगे नहीं
जमीन से अंकुरों की तरह
चमगादड़ों की तरह
लटकाया गया उलटा
नाव को घसीटा गया
छिछले पानी में |
इंजन में सवार लोग
करते फैसला
पटरियों के भाग्य का
आधी रात का सूरज
अभी अँधेरे में है |






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