Thursday, 9 August 2012

पहाडी ढलानों,-उठानों से
समुद्री झंझावातों के आधुनिक रूपवान कुचक्री गठजोड़
अन्तर्मुखी भव्यता में आत्मलीन
विराटता के सिकुड़े-सिमटे एकाकी पुंज
दमकते-खनकते बहुस्तरीय
विश्व-बाज़ार की चंद्रमुखी इमारत
रूप-सम्मोहित मोद-विलासी आंगन में बिछा
सुघड़-सलोनापन और
लावण्य-सरिता सी प्रवहमान
पहाडी कामनाओं इच्छाओं -लालसाओं
लिप्साओं -अभीप्साओं दमित आकांक्षाओं के
सतत लीला-समारोहों में मग्न
मध्यवर्गीय उच्चता की अधोगामी प्रवृत्तियाँ
यौनेच्छापूर्ति के सामंती सपने
राजसी विवाह-समारोह
और आकाशी सीढ़ियों से ऊपर तक जाने की अकेली तमन्ना
अकेली निजताओं की लज्जित कर देने वाली अंधेरी चांदनी रातें
मलिनताओं के उज्ज्वल तामझाम
हमारे समय की मुख्य अभिलाक्षनिक्ताएं
इक्कीसवीं शती के आमुखी सरोकार
द्वार पर बजते दम्भी नगाड़े
मेहनती-आस्थाओं की बेचैनी
बढ़ती जाती लगातार
इधर विश्व-बाज़ार में
आलिगन-बद्ध प्रेमी-युगल
अपनी कीर्ति -पताका का व्यवसाय करती विश्व-सुंदरियां
चुश्त आकांक्षाओं के कलशीले उभार
स्त्री का नया अद्भुत रूप
बाज़ार में खेती को उर्वर बनाता
स्वतंत्रता का तनबद्ध उपयोग
पितृ सत्ता का भार खींचती
उसमें देती खाद-पानी
सच यही नहीं मेरे युग का |
सच है बहुत बहुत अलग इससे
जो नहीं दिखता विश्व बाज़ार की
दम्भी और बेहद इकलखोर गलियों में |




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